सामान्य अध्ययन 12/01/2020

@SACHIN PAWAR…

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकीimages (18).jpeg

जलवायु परिवर्तन समस्या और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

प्रीलिम्स के लिये:

सतत विकास लक्ष्य, वैश्विक नवाचार और तकनीकी गठबंधन, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, UN Climate Action Summit, आपदा प्रतिरोधी अवसंरचना के लिये गठबंधन

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दा,जलवायु परिवर्तन से निपटने में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का योगदान, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा आधुनिक विश्व

चर्चा में क्यों?

वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन (Climate Change) विश्व के समक्ष एक जटिल चुनौती है, विभिन्न देशों द्वारा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (Science and Technology- S&T) के क्षेत्र में सहयोग जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को सीमित करने की दिशा में एक अहम भूमिका निभा सकता है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • वर्तमान समय में प्रमुख मुद्दों और विकासात्मक चुनौतियों का सामना करने वाले राष्ट्रों के समक्ष महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक और तकनीकी आयाम सृजित हुए हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधारित नवाचार (Innovation) इन बहुमुखी चुनौतियों का सामना करने का अवसर प्रदान करता है।
  • वर्ष 2030 तक संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDGs) को प्राप्त करने हेतु विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी नवाचारों का अत्यधिक महत्त्व है। ध्यातव्य है कि इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये भारत सहित विश्व के अन्य देश प्रतिबद्ध हैं जिससे वैज्ञानिक अनुसंधान और विकास में सीमा पार से सहयोग के लिए एक नए अवसर उत्पन्न हो सकते हैं।
  • भारत जैसे विविधता वाले देश में यह अपेक्षा की जाती है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी से वहाँ के लोग सशक्त होंगे और उनकी जीवन शैली आसान बनेगी तथा S&T अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों को पूरा करने की दिशा में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इस प्रकार वैश्विक राजनीति में वैज्ञानिक कूटनीति का एक महत्त्वपूर्ण नीतिगत आयाम है।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा जलवायु परिवर्तन

  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से मानव जीवन से संबंधित बहुत से नवाचार हुए हैं जो मानव जीवन को सरल बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। गौरतलब है कि इन्हीं नवाचारों से प्राप्त वस्तुएँ मनुष्य के जीवन को आसान बनाने के साथ पर्यावरण को हानि भी पहुँचाती हैं। उदाहरण के लिये फ्रिज, AC इत्यादि उपकरणों का प्रयोग एक तरफ मनुष्य के जीवन को बेहतर बनाते है और दूसरी ओर वातावरण में तापमान की वृद्धि के अहम कारक हैं।
  • साथ ही विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में नवाचार के माध्यम से ही पर्यावरण को क्षति पहुँचाने वाले वस्तुओं/तत्वों के विकल्पों की तलाश करना संभव है। अतः यह कहा जा सकता है कि विज्ञान के उन्नयन से उत्पन्न जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरण प्रदूषण जैसी समस्याओं का निवारण विज्ञान के माध्यम से ही संभव है।

वैज्ञानिक कूटनीति को बढ़ावा देने के लिये वैश्विक स्तर उठाए गए कदम

  • कुछ वर्ष पहले ही भारत ने वैश्विक नवाचार और तकनीकी गठबंधन (Global Innovation Technology Alliance- GITA) लॉन्च किया था जो फ्रंटलाइन तकनीकी-आर्थिक गठजोड़ के लिये एक सक्षम मंच प्रदान करता है। इसके माध्यम से भारत के उद्यम कनाडा, फिनलैंड, इटली, स्वीडन, स्पेन और यूके सहित अन्य देशों के अपने समकक्षों के साथ गठजोड़ कर रहे हैं तथा विश्व स्तर पर मौजूद चुनौतियों से निपटने की दिशा में प्रयासरत हैं।
  • भारत के नेतृत्व वाले और सौर उर्जा संपन्न 79 हस्ताक्षरकर्त्ता देशों तथा लगभग 121 सहभागी देशों वाला अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA) आधुनिक समय में वैज्ञानिक कूटनीति का एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण है। ध्यातव्य है कि ISA का उद्देश्य सौर संसाधन संपन्न देशों के बीच सहयोग के लिये एक समर्पित मंच प्रदान करना है। इस तरह का मंच सदस्य देशों की ऊर्जा ज़रूरतों को सुरक्षित, सस्ती, न्यायसंगत और टिकाऊ तरीके से पूरा कर सौर ऊर्जा के उपयोग के सामान्य लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में सकारात्मक योगदान दे सकता है।
  • हाल ही में न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र जलवायु कार्यवाही शिखर सम्मेलन (UN Climate Action Summit) में भारत के प्रधानमंत्री ने आपदा प्रतिरोधी अवसंरचना के लिये गठबंधन (Coalition for Disaster Resilient Infrastructure- CDRI) की घोषणा की।
    • गौरतलब है कि CDRI 35 देशों के परामर्श से भारत द्वारा संचालित अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी का एक और उदाहरण है जो जलवायु परिवर्तन के खतरों का सामना करने के लिये आवश्यक जलवायु और आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के निर्माण हेतु विकसित और विकासशील देशों को सहयोग प्रदान करेगा। CDRI सदस्य देशों को तकनीकी सहायता और क्षमता विकास, अनुसंधान एवं ज्ञान प्रबंधन तथा वकालत व साझेदारी प्रदान करेगा। इसका उद्देश्य जोखिम की पहचान, उसका निवारण तथा आपदा जोखिम प्रबंधन करना है।
    • गठबंधन का उद्देश्य दो-तीन वर्षों के भीतर सदस्य देशों के नीतिगत ढाँचे, भविष्य के बुनियादी ढाँचे के निवेश और क्षेत्रों में जलवायु से संबंधित घटनाओं और प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले आर्थिक नुकसान को कम करने संबंधी योजनाओं पर तीन गुना सकारात्मक प्रभाव डालना है।
    • इस गठबंधन के माध्यम से किफायती आवास, स्कूल, स्वास्थ्य सुविधाओं और सार्वजनिक उपयोग की वस्तुओं को प्राकृतिक या मानव निर्मित खतरों से बचाने के लिये आवश्यक मज़बूत मानकों के अनुरूप बनाना इत्यादि बातों को सुनिश्चित करके भूकंप, सुनामी, बाढ़ और तूफान के प्रभावों को कम किया जा सकता है।

आगे की राह

  • यह स्पष्ट है कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी नवाचार में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग महज दिखावा नहीं है बल्कि वर्तमान समय की आवश्यकता है। गौरतलब है कि किसी भी राष्ट्र के पास बुनियादी ढाँचा और मानव संसाधन की वह क्षमता नहीं हैं, जिससे पृथ्वी और मानव जाति के समक्ष मौजूद विशाल चुनौतियों से निपटा जा सके। इसलिये, यह अपरिहार्य है कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार को ध्यान में रखकर भारत एवं अन्य देशों द्वारा एक आंतरिक कूटनीतिक उपकरण (Intrinsic Diplomatic Tool) बनाया जाना अत्यंत आवश्यक है।
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय जुड़ाव के लिए प्रभावी उपकरणों को डिज़ाइन करने एवं उन्हें विकसित करने हेतु हितधारकों के साथ-साथ वैज्ञानिक और तकनीकी समुदाय के सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता होगी।
  • प्रौद्योगिकी के माध्यम से पर्यावरण अनुकूल वस्तुओं की खोज कर एवं उन तक आसान पहुँच प्रदान कर ही पर्यावरणीय क्षति को कम किया जा सकता है।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


जीव विज्ञान और पर्यावरण

भारतीय कोबरा के जीनोम का अनुक्रमण

प्रीलिम्स के लिये:

जीनोम का अनुक्रमण

मेन्स के लिये:

भारतीय कोबरा के जीनोम के अनुक्रमण से संबंधित शोध से जुड़े तथ्य

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के वैज्ञानिकों सहित वैज्ञानिकों के एक समूह ने भारत के सबसे विषैले साँपों में से एक ‘भारतीय कोबरा’ (Indian Cobra) के जीनोम (Genome) को अनुक्रमित (Sequenced) किया है।

अध्ययन से संबंधित प्रमुख निष्कर्ष:

  • भारतीय कोबरा के जीनोम को अनुक्रमित करने के लिये किये गए इस अध्ययन में कोबरा के 14 विभिन्न ऊतकों से लिये गए जीनोम और जीन संबंधी डेटा का प्रयोग किया गया।
  • वैज्ञानिकों ने विष ग्रंथि संबंधी जीनों की व्याख्या की गई तथा विष ग्रंथि की कार्य प्रक्रिया में शामिल विषाक्त प्रोटीनों को समझते हुए इसके जीनोमिक संगठन का विश्लेषण किया।
  • इस अध्ययन के दौरान विष ग्रंथि में 19 विषाक्त जीनों का विश्लेषण किया गया और इनमें से 16 जीनों में प्रोटीन की उपस्थिति पाई गई।
  • इन 19 विशिष्ट विषाक्त जीनों को लक्षित कर तथा कृत्रिम मानव प्रतिरोधी का प्रयोग करके भारतीय कोबरा के काटने पर इलाज के लिये एक सुरक्षित और प्रभावी विष-प्रतिरोधी का निर्माण हो सकेगा।

जीनोम के अनुक्रमण से लाभ:

भारतीय कोबरा के जीनोम के अनुक्रमण से उसके विष के रासायनिक घटकों को समझने में मदद मिलेगी और एक नए विष प्रतिरोधी उपचारों के विकास हो सकेगा क्योंकि वर्तमान विष प्रतिरोधी एक सदी से अधिक समय तक व्यावहारिक रूप से अपरिवर्तित हैं।

विषैले साँपों के उच्च-गुणवत्ता वाले जीनोम के अनुक्रमण से विष ग्रंथियों से संबंधित विशिष्ट विषाक्त जीनों की व्यापक सूची प्राप्त होगी, जिसका प्रयोग परिभाषित संरचना वाले कृत्रिम विष प्रतिरोधी का विकास करने में किया जाएगा।

Genome

विष-प्रतिरोधी बनाने का तरीका:

  • वर्तमान में विष-प्रतिरोधी के निर्माण के लिये साँप के विष को घोड़ों (किसी अन्य पालतू जानवर) के जीन के साथ प्रतिरक्षित किया जाता है और यह 100 साल से अधिक समय की प्रक्रिया द्वारा विकसित है।
  • यह प्रक्रिया श्रमसाध्य है और निरंतरता की कमी के कारण अलग-अलग प्रभावकारिता और गंभीर दुष्प्रभावों से ग्रस्त है।

भारत में सर्पदंश की स्थिति:

  • भारत में प्रत्येक वर्ष ‘बिग-4’ (Big-4) साँपों के सर्पदंश से लगभग 46000 व्यक्तियों की मौत हो जाती है तथा लगभग 1,40,000 व्यक्ति नि:शक्त हो जाते हैं।

बिग-4:

  • इस समूह में निम्नलिखित चार प्रकार के साँपों को सम्मिलित किया जाता है-
    • भारतीय कोबरा (Indian Cobra)
    • कॉमन करैत (Common Krait)
    • रसेल वाइपर (Russell’s Viper)
    • सॉ स्केल्ड वाइपर (Saw-scaled Viper)
  • वहीं पूरे विश्व में प्रत्येक वर्ष लगभग पाँच मिलियन व्यक्ति सर्पदंश से प्रभावित होते हैं, जिसमें से लगभग 1,00,000 व्यक्तियों की मौत हो जाती है तथा लगभग 4,00,000 व्यक्ति नि:शक्त हो जाते हैं।
  • हालाँकि भारत में साँपों की 270 प्रजातियों में से 60 प्रजातियों के सर्पदंश से मृत्यु और अपंगता जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है परंतु अभी उपलब्ध विष प्रतिरोधी दवा केवल बिग-4 साँपों के खिलाफ ही प्रभावी है।
  • हालाँकि साँपों की बिग-4 प्रजातियाँ उत्तर-पूर्वी भारत में नहीं पाई जाती हैं, लेकिन इस क्षेत्र में सर्पदंश के मामलों की संख्या काफी अधिक है।
  • पश्चिमी भारत का ‘सिंद करैत’ (Sind Krait) साँप का विष कोबरा साँप की तुलना में 40 गुना अधिक प्रभावी होता है परंतु दुर्भाग्य से पॉलीवलेंट (Polyvalent) विष प्रतिरोधी इस प्रजाति के साँप के विष को प्रभावी ढंग से निष्प्रभावी करने में विफल रहता है।

भारतीय कोबरा:

  • इसका वैज्ञानिक नाम ‘नाजा नाजा’ (Naja naja) है।
  • यह 4 से 7 फीट लंबा होता है।
  • यह भारत, श्रीलंका, पाकिस्तान एवं दक्षिण में मलेशिया तक पाया जाता है।
  • यह साँप आमतौर पर खुले जंगल के किनारों, खेतों और गाँवों के आसपास के क्षेत्रों में रहना पसंद करते हैं।

स्रोत- द हिंदू


नीतिशास्त्र

एथिकल वीगनिज़्म : एक दार्शनिक विश्वास

मेन्स के लिये:

एथिकल वीगनिज़्म , प्रकार, एथिकल वेजीटेरियनिज़्म

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) के एक रोज़गार न्यायाधिकरण (Employment Tribunal) द्वारा जोर्डी कासमिटजाना (Jordi Casamitjana) की याचिका पर एथिकल वीगनिज़्म (Ethical Veganism) के संदर्भ में फैसला सुनाया गया।

हालिया संदर्भ:

  • जोर्डी कासमिटजाना नाम के एक व्यक्ति द्वारा रोज़गार न्यायाधिकरण में याचिका दायर की गई थी जिसमें कहा गया था कि लीग अगेंस्ट क्रुअल स्पोर्ट्स (The League Against Cruel Sports) नामक एक पशु कल्याण संस्था ने उसे नौकरी से इसलिये निकाल दिया क्योंकि उसने आरोप लगाया था कि इस संस्था का पैसा ऐसी कंपनियों में लगाया जाता है जो पशुओं का परीक्षण करती हैं।
  • दूसरी तरफ पशु कल्याण संस्था का कहना था कि उसे अशिष्ट बर्ताव के चलते निकाला गया था। साथ ही वह ब्रिटेन में लोमड़ी के शिकार और अन्य प्रकार के मनोरंजक शिकार पर प्रतिबंध आरोपित करने के पक्ष में भी था।
  • इसी संदर्भ में न्यायाधिकरण को यह निर्धारित करना था कि एथिकल वीगनिज़्म (Ethical Veganism) धार्मिक या दार्शनिक विश्वास जो समानता अधिनियम, 2010 में वर्णित है उन मानदंडों के अनुकूल है या नहीं।
  • रोज़गार न्यायाधिकरण के न्यायाधीश रॉबिन पोस्ले ने निर्धारित किया कि ब्रिटेन के कानून में समानता अधिनियम, 2010 (The Equality Act, 2010) द्वारा जिन दार्शनिक विश्वासों के प्रति भेदभाव न करने की सुरक्षा दी गई है उनमें एथिकल वीगनिज़्म (Ethical veganism) भी शामिल है अर्थात् किसी भी दार्शनिक विश्वास के लिये जो मानदंड निर्धारित हैं वे सभी एथिकल वीगनिज्म में भी देखे जाते हैं।

एथिकल वीगनिज़्म (Ethical Veganism):

  • ऑक्सफोर्ड हैंडबुक ऑफ फूड एथिक्स में ‘द एथिकल केस फॉर वेजनिज्म’ के अनुसार, एथिकल वीगनिज़्म शाकाहारी जीवन-शैली (Vegan-Lifestyle) के लिये एक सकारात्मक नैतिक मूल्यांकन प्रदान करता है।
  • एथिकल वीगनिज़्म में पशुओं से प्राप्त होने वाले उत्पादों के साथ- साथ दूध का बहिष्कार करना भी शामिल है।

एथिकल वेजीटेरियनिज़्म ओर एथिकल वीगनिज़्म में अंतर

  • एथिकल वेजीटेरियननिज़्म और एथिकल वीगनिज़्म जानवरों से बने उत्पाद एवं जानवरों के द्वारा बनाये गए उत्पादों के बीच अंतर स्पष्ट करते हैं।
  • एथिकल वेजीटेरियनिज़्म (Ethical Vegetarianism) में पशुओं से बनने वाले उत्पादों का विरोध होता है, अर्थात् कोई भी ऐसा उत्पाद जिसे जीव हत्या के बाद प्राप्त किया गया हो जैसे- मांस , चमड़े के पर्स, बेल्ट इत्यादि वहीं दूसरी ओर एथिकल वीगनिज़्म (Ethical Veganism) में पशुओं (बिना जीव हत्या के) से प्राप्त होने वाले उत्पादों का बहिष्कार शामिल है जैसे- दूध,अंडे पनीर इत्यादि।

एथिकल वीगनिज़्म के दो मुख्य प्रकार हैं:

  • व्यापक निरपेक्षवादी वीगनिज़्म (Broad Absolutist Veganism)
  • विनम्र नैतिक वीगनिज़्म (Modest Ethical Veganism).

व्यापक निरपेक्षवादी वीगनिज़्म में पशुओं द्वारा निर्मित किसी भी उत्पाद का प्रयोग पूर्ण रूप से वर्जित होता है, जबकि विनम्र एथिकल वीगनिज़्म में कुछ पशुओं के द्वारा निर्मित उत्पादों (बिल्ली,कुत्ता,गाय, सूअर आदि) के प्रयोग पर ही पाबंदी होती है।

क्या है ब्रिटेन समानता अधिनियम, 2010:

  • ब्रिटेन समानता अधिनियम, 2010 कार्य स्थल और समाज में लोगों को व्यापक भेदभाव किये जाने से बचाता है। सेवाओं और सार्वजनिक कार्यों में नागरिकों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष भेदभाव एवं उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करता है।
  • वेतन संबंधी गोपनीयता कानूनों को लागू करने योग्य बनाना, रोज़गार न्यायाधिकरणों को व्यापक कार्यबल को लाभान्वित करने वाली सिफ़ारिशें करने की शक्ति देना और धर्म या विश्वास को संरक्षण प्रदान करने की शक्ति प्रदान करना अधिनियम की विशेषताओं में शामिल है।
  • अधिनियम में किसी भी विश्वास को धार्मिक या दार्शनिक विश्वास के रूप में परिभाषित किया गया है। चूँकि रोज़गार न्यायाधिकरण ने फैसला सुनाया है कि नैतिकतावाद एक दार्शनिक विश्वास है, अत: उपरोक्त नायधिकरण द्वारा दिया गया निर्णय, एथिकल वीगनिज़्म को भी संरक्षण प्रदान करता है।
  • धर्म या विश्वास समानता अधिनियम, 2010 द्वारा प्रदत्त नौ ‘संरक्षित विशेषताओं’ में से एक है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 10 जनवरी, 2020

भारोत्तोलक सरबजीत कौर पर प्रतिबंध

महिला भारोत्तोलक सरबजीत कौर पर राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी (NADA) ने डोपिंग के कारण 4 वर्ष का प्रतिबंध लगा दिया है। राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी के अनुसार, डोपिंग रोधी अनुशासन समिति ने सरबजीत कौर को डोपिंग के नियमों का उल्लंघन करने का दोषी पाया है। ज्ञात हो कि इससे पूर्व भी सरबजीत कौर को प्रतिबंधित पदार्थ के सेवन का दोषी पाया गया था। NADA की स्थापना का मुख्य उद्देश्य देश भर में खेलों में ड्रग्स और प्रबंधित पदार्थों के बढ़ते चलन को रोकना है। यह एक गैर-सरकारी संस्था है जिसका गठन वर्ष 2005 में किया गया था।

जम्मू-कश्मीर से जल्द हटेंगे प्रतिबंध

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के पश्चात् केंद्र सरकार की ओर से लगाए गए तमाम प्रतिबंधों पर उच्चतम न्यायालय ने फैसला देते हुए कहा है कि इस सभी प्रतिबंधों की आगामी 7 दिनों के भीतर समीक्षा की जानी चाहिये। उल्लेखनीय है कि इन प्रतिबंधों में नेताओं के आवागमन पर रोक और इंटरनेट शटडाउन आदि शामिल हैं। न्यायालय ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि इंटरनेट का प्रयोग अभिव्यक्ति के अधिकार का हिस्सा है और इससे अनिश्चित काल के लिये बंद नहीं किया जा सकता। साथ ही न्यायालय ने कहा है कि धारा-144 का प्रयोग किसी विचार को दबाने के लिये हथियार के रूप में नहीं किया जाना चाहिये।

सामिया नसीम

भारतीय मूल की अमेरिकी नागरिक सामिया नसीम को अमेरिका के अटॉर्नी जनरल विलियम बर ने शिकागो के जज के पद पर नियुक्त किया है। इससे पूर्व सामिया नसीम ने न्यूयॉर्क और शिकागो में इमीग्रेशन एवं सीमा शुल्क परिवर्तन विभाग तथा होमलैंड सुरक्षा विभाग के सहायक मुख्य वकील के तौर पर कार्य किया है। सामिया नसीम न्यूयॉर्क के स्टेट बार की भी सदस्य हैं।

विश्व हिंदी दिवस

10 जनवरी को विश्व भर में हिंदी दिवस का आयोजन किया जाता है। आधिकारिक तौर पर हिंदी दिवस की शुरुआत वर्ष 2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह द्वारा की गई थी। विश्व हिन्दी दिवस का मुख्य उद्देश्य विश्व भर में हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देना था। गौरतलब है कि विश्व भर के कई विश्वविद्यालयों में हिंदी एक विषय के तौर पर पढ़ाई जाती है। हिंदी भाषा को लेकर हिंदी के प्रसिद्ध स्तंभकार भारतेन्दु हरिश्चंद्र की निम्न पंक्तियाँ कालजयी है-

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।

बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।

Leave a comment