GK 7 MARCH 2021

‘जन औषधि दिवस’ समारोह में पीएम मोदी बोले- ‘भारत दुनिया की फार्मेसी है, ये सिद्ध हो चुका’

(2,087 words)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार सुबह ‘जनऔषधि दिवस’ समारोह को संबोधित किया। कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री ने शिलॉन्ग स्थित नॉर्थ-ईस्टर्न इंदिरा गांधी रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ एंड मेडिकल साइंस में बने 7500वें ‘जनऔषधि केंद्र’ को भी राष्ट्र को समर्पित किया।

इस दौरान पीएम मोदी ने वीडियो कांफ्रेसिंग के माध्यम से भारतीय जनऔषधि परियोजना के लाभार्थियों से बातचीत की और हितधारकों को उनके अच्छे कार्यों के लिए सम्मानित भी किया। इस अवसर पर केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री डी.वी. सदानंद गौड़ा, राज्य मंत्री मनसुख मांडविया, अनुराग ठाकुर, , हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर, मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड के. संगमा, गुजरात के डिप्टी सीएम नितिन भाई पटेल मौजूद रहे।

गौरतलब हो जनऔषधि केंद्रों के बारे में ज्यादा से ज्यादा लोगों को जानकारी देने के लिए 1 मार्च से 7 मार्च तक जनऔषधि सप्ताह मनाया जा रहा है। इसके लिए ‘जन औषधि – सेवा भी, रोजगार भी’ का नारा दिया गया है। आज सप्ताह के आखिरी दिन यानी 7 मार्च को जन औषधि दिवस के रूप में मनाया जा रहा है।

जन औषधि दिवस सप्ताह- 2021 पूरे देश में 7400 से अधिक प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि केंद्रों के माध्यम से मनाया जा रहा है। इस पहल का उद्देश्य किफायती दरों पर गुणवत्तापूर्ण दवाइयां उपलब्ध कराना है। इस परियोजना के तहत ऐसे केंद्रों की संख्या 7499 पहुंच गई है। यह केंद्र देश के सभी जिलों में हैं। वित्त वर्ष 2020-21 (4 मार्च 2021 तक) में बिक्री से आम नागरिकों के करीब 3600 करोड़ रुपए की बचत हुई है क्योंकि ये दवाएं बाजार दरों के मुकाबले 50 प्रतिशत से 90 प्रतिशत तक सस्ती हैं।

इस अवसर पर पीएम मोदी ने अपने संबोधन के दौरान कहा, जनऔषधि चिकित्सक, जनऔषधि ज्योति और जनऔषधि सारथी ये तीन प्रकार के महत्वपूर्ण अवॉर्ड प्राप्त करने वाले सभी साथियों को बधाई देता हूं। जनऔषधि योजना को देश के कोने-कोने में चलाने वाले और इसके कुछ लाभार्थियों से आज मुझे बातचीत करने का अवसर मिला और जो चर्चा हुई है उसमें स्पष्ट है कि यह योजना गरीब और विशेषकर मध्यमवर्गीय परिवारों की बहुत बड़ी साथी बन रही है। यह योजना सेवा और रोजगार दोनों का माध्यम बन रही है।

जनऔषधि केंद्रों में सस्ती दवाई के साथ-साथ युवाओं को मिला आय का साधन

जनऔषधि केंद्रों में सस्ती दवाई के साथ-साथ युवाओं को आय के साधन भी मिल रहे हैं। विशेषरूप से हमारी बहनों-बेटियों को जब सिर्फ ढाई रुपए में सेनेटरी पैड उपलब्ध कराए जाते हैं तो इससे उनके स्वास्थ्य व उस पर एक सकारात्मक असर पड़ता है। अब तक 11 करोड़ से ज्यादा सेनेटरी नैपकिन इन केंद्रों पर बिक चुके हैं। इसी तरह जनऔषधि जननी अभियान के तहत गर्भवती महिलाओं के लिए जरूरी पोषण और सप्लीमेंट भी जनऔषधि केंद्रों पर उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। इतना ही नहीं 1000 से ज्यादा जनऔषधि केंद्र तो ऐसे हैं जिन्हें महिलाएं ही चला रही है। यानी जनऔषधि योजना बेटियों की आत्मनिर्भरता को भी बल दे रही है। इस योजना से पहाड़ी क्षेत्रों में नॉर्थ-ईस्ट में जनजातिय क्षेत्रों में रहने वाले देशवासियों तक सस्ती दवा देने में भी मदद मिल रही है। आज भी जब 7500वें केंद्र का लोकार्पण किया गया है तो वो शिलॉन्ग में हुआ है।इससे स्पष्ट है कि नॉर्थ ईस्ट में जनऔषधि केंद्रों का कितना विस्तार हो रहा है।

6 साल पहले तक देश में 100 जनऔषधि केंद्र भी नहीं थे, आज 7500 के पड़ाव पर

पीएम ने कहा, 7500 के पड़ाव तक पहुंचना इसलिए भी अहम है क्योंकि 6 साल पहले तक देश में ऐसे 100 केंद्र भी नहीं थे। हम हो सके तो उतना ही तेजी से 10 हजार का टारगेट पार करना चाहते हैं। मैं आज राज्य सरकारों से, विभाग के लोगों से एक आग्रह करूंगा आजादी के 75 साल हमारे सामने महत्वपूर्ण अवसर है, क्या हम ये तय कर सकते हैं कि देश के कम से कम 75 जिले ऐसे होंगे जहां पर 75 से ज्यादा जनऔषधि केंद्र होंगे और वो हम आने वाले कुछ ही समय में कर देंगे। इसी प्रकार से उसका लाभ लेने वालों की संख्या का भी लक्ष्य तय करना चाहिए। अब एक भी जनऔषधि केंद्र ऐसा न हो जिसमें आज जितने लोग आते हैं उसकी संख्या दोगुनी-तिगुनी न हो। इन दो चीजों को लेकर हमें काम करना चाहिए। ये काम जितना जल्दी होगा देश के गरीबों को उतना ही लाभ होगा। ये जनऔषधि केंद्र हर साल गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों के लगभग 3600 करोड़ रुपए बचा रहे हैं। ये रकम छोटी नहीं है जो पहले महंगी दवाओं में खर्च हो जाते थे। यानी अभी इन परिवारों के 3600 करोड़ रुपए परिवार के अच्छे कामों के लिए और अधिक उपयोगी होने लगे हैं।

मकर संक्रांति

*🌒एक त्योहार के है विभिन्न रूप ‘,नाम*

मकर संक्रांति का त्योहार वैसे तो हमारे पूरे देश में ही मनाया जाता है पर हर प्रांत व राज्य में इसका नाम व मनाये जाने का तरीका विभिन्न है। यही तो हमारी एकता में अनेकता को बड़े सुंदर तरीके से दर्शाता है।

🌾पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल में : लोहड़ी,

🌾दक्षिण में: पोंगल,

🌾 कर्नाटक में :सुग्गी,

🌾पूर्वोत्तर भारत में :बिहू,

🌾उड़ीसा में :मकर चैला,

🌾 बंगाल में ;:पौष संक्रांति,

🌾 गुजरात व उत्तराखण्ड में :उत्तरायणी एवं बुंदेलखण्ड,

🌾बिहार और मध्यप्रदेश में :सकरात आदि रूपों में इस पर्व को मनाते हैं।images (25)

सामान्य अध्ययन 12/01/2020

@SACHIN PAWAR…

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकीimages (18).jpeg

जलवायु परिवर्तन समस्या और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

प्रीलिम्स के लिये:

सतत विकास लक्ष्य, वैश्विक नवाचार और तकनीकी गठबंधन, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, UN Climate Action Summit, आपदा प्रतिरोधी अवसंरचना के लिये गठबंधन

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दा,जलवायु परिवर्तन से निपटने में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का योगदान, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा आधुनिक विश्व

चर्चा में क्यों?

वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन (Climate Change) विश्व के समक्ष एक जटिल चुनौती है, विभिन्न देशों द्वारा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (Science and Technology- S&T) के क्षेत्र में सहयोग जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को सीमित करने की दिशा में एक अहम भूमिका निभा सकता है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • वर्तमान समय में प्रमुख मुद्दों और विकासात्मक चुनौतियों का सामना करने वाले राष्ट्रों के समक्ष महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक और तकनीकी आयाम सृजित हुए हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधारित नवाचार (Innovation) इन बहुमुखी चुनौतियों का सामना करने का अवसर प्रदान करता है।
  • वर्ष 2030 तक संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDGs) को प्राप्त करने हेतु विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी नवाचारों का अत्यधिक महत्त्व है। ध्यातव्य है कि इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये भारत सहित विश्व के अन्य देश प्रतिबद्ध हैं जिससे वैज्ञानिक अनुसंधान और विकास में सीमा पार से सहयोग के लिए एक नए अवसर उत्पन्न हो सकते हैं।
  • भारत जैसे विविधता वाले देश में यह अपेक्षा की जाती है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी से वहाँ के लोग सशक्त होंगे और उनकी जीवन शैली आसान बनेगी तथा S&T अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों को पूरा करने की दिशा में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इस प्रकार वैश्विक राजनीति में वैज्ञानिक कूटनीति का एक महत्त्वपूर्ण नीतिगत आयाम है।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा जलवायु परिवर्तन

  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से मानव जीवन से संबंधित बहुत से नवाचार हुए हैं जो मानव जीवन को सरल बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। गौरतलब है कि इन्हीं नवाचारों से प्राप्त वस्तुएँ मनुष्य के जीवन को आसान बनाने के साथ पर्यावरण को हानि भी पहुँचाती हैं। उदाहरण के लिये फ्रिज, AC इत्यादि उपकरणों का प्रयोग एक तरफ मनुष्य के जीवन को बेहतर बनाते है और दूसरी ओर वातावरण में तापमान की वृद्धि के अहम कारक हैं।
  • साथ ही विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में नवाचार के माध्यम से ही पर्यावरण को क्षति पहुँचाने वाले वस्तुओं/तत्वों के विकल्पों की तलाश करना संभव है। अतः यह कहा जा सकता है कि विज्ञान के उन्नयन से उत्पन्न जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरण प्रदूषण जैसी समस्याओं का निवारण विज्ञान के माध्यम से ही संभव है।

वैज्ञानिक कूटनीति को बढ़ावा देने के लिये वैश्विक स्तर उठाए गए कदम

  • कुछ वर्ष पहले ही भारत ने वैश्विक नवाचार और तकनीकी गठबंधन (Global Innovation Technology Alliance- GITA) लॉन्च किया था जो फ्रंटलाइन तकनीकी-आर्थिक गठजोड़ के लिये एक सक्षम मंच प्रदान करता है। इसके माध्यम से भारत के उद्यम कनाडा, फिनलैंड, इटली, स्वीडन, स्पेन और यूके सहित अन्य देशों के अपने समकक्षों के साथ गठजोड़ कर रहे हैं तथा विश्व स्तर पर मौजूद चुनौतियों से निपटने की दिशा में प्रयासरत हैं।
  • भारत के नेतृत्व वाले और सौर उर्जा संपन्न 79 हस्ताक्षरकर्त्ता देशों तथा लगभग 121 सहभागी देशों वाला अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA) आधुनिक समय में वैज्ञानिक कूटनीति का एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण है। ध्यातव्य है कि ISA का उद्देश्य सौर संसाधन संपन्न देशों के बीच सहयोग के लिये एक समर्पित मंच प्रदान करना है। इस तरह का मंच सदस्य देशों की ऊर्जा ज़रूरतों को सुरक्षित, सस्ती, न्यायसंगत और टिकाऊ तरीके से पूरा कर सौर ऊर्जा के उपयोग के सामान्य लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में सकारात्मक योगदान दे सकता है।
  • हाल ही में न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र जलवायु कार्यवाही शिखर सम्मेलन (UN Climate Action Summit) में भारत के प्रधानमंत्री ने आपदा प्रतिरोधी अवसंरचना के लिये गठबंधन (Coalition for Disaster Resilient Infrastructure- CDRI) की घोषणा की।
    • गौरतलब है कि CDRI 35 देशों के परामर्श से भारत द्वारा संचालित अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी का एक और उदाहरण है जो जलवायु परिवर्तन के खतरों का सामना करने के लिये आवश्यक जलवायु और आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के निर्माण हेतु विकसित और विकासशील देशों को सहयोग प्रदान करेगा। CDRI सदस्य देशों को तकनीकी सहायता और क्षमता विकास, अनुसंधान एवं ज्ञान प्रबंधन तथा वकालत व साझेदारी प्रदान करेगा। इसका उद्देश्य जोखिम की पहचान, उसका निवारण तथा आपदा जोखिम प्रबंधन करना है।
    • गठबंधन का उद्देश्य दो-तीन वर्षों के भीतर सदस्य देशों के नीतिगत ढाँचे, भविष्य के बुनियादी ढाँचे के निवेश और क्षेत्रों में जलवायु से संबंधित घटनाओं और प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले आर्थिक नुकसान को कम करने संबंधी योजनाओं पर तीन गुना सकारात्मक प्रभाव डालना है।
    • इस गठबंधन के माध्यम से किफायती आवास, स्कूल, स्वास्थ्य सुविधाओं और सार्वजनिक उपयोग की वस्तुओं को प्राकृतिक या मानव निर्मित खतरों से बचाने के लिये आवश्यक मज़बूत मानकों के अनुरूप बनाना इत्यादि बातों को सुनिश्चित करके भूकंप, सुनामी, बाढ़ और तूफान के प्रभावों को कम किया जा सकता है।

आगे की राह

  • यह स्पष्ट है कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी नवाचार में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग महज दिखावा नहीं है बल्कि वर्तमान समय की आवश्यकता है। गौरतलब है कि किसी भी राष्ट्र के पास बुनियादी ढाँचा और मानव संसाधन की वह क्षमता नहीं हैं, जिससे पृथ्वी और मानव जाति के समक्ष मौजूद विशाल चुनौतियों से निपटा जा सके। इसलिये, यह अपरिहार्य है कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार को ध्यान में रखकर भारत एवं अन्य देशों द्वारा एक आंतरिक कूटनीतिक उपकरण (Intrinsic Diplomatic Tool) बनाया जाना अत्यंत आवश्यक है।
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय जुड़ाव के लिए प्रभावी उपकरणों को डिज़ाइन करने एवं उन्हें विकसित करने हेतु हितधारकों के साथ-साथ वैज्ञानिक और तकनीकी समुदाय के सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता होगी।
  • प्रौद्योगिकी के माध्यम से पर्यावरण अनुकूल वस्तुओं की खोज कर एवं उन तक आसान पहुँच प्रदान कर ही पर्यावरणीय क्षति को कम किया जा सकता है।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


जीव विज्ञान और पर्यावरण

भारतीय कोबरा के जीनोम का अनुक्रमण

प्रीलिम्स के लिये:

जीनोम का अनुक्रमण

मेन्स के लिये:

भारतीय कोबरा के जीनोम के अनुक्रमण से संबंधित शोध से जुड़े तथ्य

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के वैज्ञानिकों सहित वैज्ञानिकों के एक समूह ने भारत के सबसे विषैले साँपों में से एक ‘भारतीय कोबरा’ (Indian Cobra) के जीनोम (Genome) को अनुक्रमित (Sequenced) किया है।

अध्ययन से संबंधित प्रमुख निष्कर्ष:

  • भारतीय कोबरा के जीनोम को अनुक्रमित करने के लिये किये गए इस अध्ययन में कोबरा के 14 विभिन्न ऊतकों से लिये गए जीनोम और जीन संबंधी डेटा का प्रयोग किया गया।
  • वैज्ञानिकों ने विष ग्रंथि संबंधी जीनों की व्याख्या की गई तथा विष ग्रंथि की कार्य प्रक्रिया में शामिल विषाक्त प्रोटीनों को समझते हुए इसके जीनोमिक संगठन का विश्लेषण किया।
  • इस अध्ययन के दौरान विष ग्रंथि में 19 विषाक्त जीनों का विश्लेषण किया गया और इनमें से 16 जीनों में प्रोटीन की उपस्थिति पाई गई।
  • इन 19 विशिष्ट विषाक्त जीनों को लक्षित कर तथा कृत्रिम मानव प्रतिरोधी का प्रयोग करके भारतीय कोबरा के काटने पर इलाज के लिये एक सुरक्षित और प्रभावी विष-प्रतिरोधी का निर्माण हो सकेगा।

जीनोम के अनुक्रमण से लाभ:

भारतीय कोबरा के जीनोम के अनुक्रमण से उसके विष के रासायनिक घटकों को समझने में मदद मिलेगी और एक नए विष प्रतिरोधी उपचारों के विकास हो सकेगा क्योंकि वर्तमान विष प्रतिरोधी एक सदी से अधिक समय तक व्यावहारिक रूप से अपरिवर्तित हैं।

विषैले साँपों के उच्च-गुणवत्ता वाले जीनोम के अनुक्रमण से विष ग्रंथियों से संबंधित विशिष्ट विषाक्त जीनों की व्यापक सूची प्राप्त होगी, जिसका प्रयोग परिभाषित संरचना वाले कृत्रिम विष प्रतिरोधी का विकास करने में किया जाएगा।

Genome

विष-प्रतिरोधी बनाने का तरीका:

  • वर्तमान में विष-प्रतिरोधी के निर्माण के लिये साँप के विष को घोड़ों (किसी अन्य पालतू जानवर) के जीन के साथ प्रतिरक्षित किया जाता है और यह 100 साल से अधिक समय की प्रक्रिया द्वारा विकसित है।
  • यह प्रक्रिया श्रमसाध्य है और निरंतरता की कमी के कारण अलग-अलग प्रभावकारिता और गंभीर दुष्प्रभावों से ग्रस्त है।

भारत में सर्पदंश की स्थिति:

  • भारत में प्रत्येक वर्ष ‘बिग-4’ (Big-4) साँपों के सर्पदंश से लगभग 46000 व्यक्तियों की मौत हो जाती है तथा लगभग 1,40,000 व्यक्ति नि:शक्त हो जाते हैं।

बिग-4:

  • इस समूह में निम्नलिखित चार प्रकार के साँपों को सम्मिलित किया जाता है-
    • भारतीय कोबरा (Indian Cobra)
    • कॉमन करैत (Common Krait)
    • रसेल वाइपर (Russell’s Viper)
    • सॉ स्केल्ड वाइपर (Saw-scaled Viper)
  • वहीं पूरे विश्व में प्रत्येक वर्ष लगभग पाँच मिलियन व्यक्ति सर्पदंश से प्रभावित होते हैं, जिसमें से लगभग 1,00,000 व्यक्तियों की मौत हो जाती है तथा लगभग 4,00,000 व्यक्ति नि:शक्त हो जाते हैं।
  • हालाँकि भारत में साँपों की 270 प्रजातियों में से 60 प्रजातियों के सर्पदंश से मृत्यु और अपंगता जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है परंतु अभी उपलब्ध विष प्रतिरोधी दवा केवल बिग-4 साँपों के खिलाफ ही प्रभावी है।
  • हालाँकि साँपों की बिग-4 प्रजातियाँ उत्तर-पूर्वी भारत में नहीं पाई जाती हैं, लेकिन इस क्षेत्र में सर्पदंश के मामलों की संख्या काफी अधिक है।
  • पश्चिमी भारत का ‘सिंद करैत’ (Sind Krait) साँप का विष कोबरा साँप की तुलना में 40 गुना अधिक प्रभावी होता है परंतु दुर्भाग्य से पॉलीवलेंट (Polyvalent) विष प्रतिरोधी इस प्रजाति के साँप के विष को प्रभावी ढंग से निष्प्रभावी करने में विफल रहता है।

भारतीय कोबरा:

  • इसका वैज्ञानिक नाम ‘नाजा नाजा’ (Naja naja) है।
  • यह 4 से 7 फीट लंबा होता है।
  • यह भारत, श्रीलंका, पाकिस्तान एवं दक्षिण में मलेशिया तक पाया जाता है।
  • यह साँप आमतौर पर खुले जंगल के किनारों, खेतों और गाँवों के आसपास के क्षेत्रों में रहना पसंद करते हैं।

स्रोत- द हिंदू


नीतिशास्त्र

एथिकल वीगनिज़्म : एक दार्शनिक विश्वास

मेन्स के लिये:

एथिकल वीगनिज़्म , प्रकार, एथिकल वेजीटेरियनिज़्म

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) के एक रोज़गार न्यायाधिकरण (Employment Tribunal) द्वारा जोर्डी कासमिटजाना (Jordi Casamitjana) की याचिका पर एथिकल वीगनिज़्म (Ethical Veganism) के संदर्भ में फैसला सुनाया गया।

हालिया संदर्भ:

  • जोर्डी कासमिटजाना नाम के एक व्यक्ति द्वारा रोज़गार न्यायाधिकरण में याचिका दायर की गई थी जिसमें कहा गया था कि लीग अगेंस्ट क्रुअल स्पोर्ट्स (The League Against Cruel Sports) नामक एक पशु कल्याण संस्था ने उसे नौकरी से इसलिये निकाल दिया क्योंकि उसने आरोप लगाया था कि इस संस्था का पैसा ऐसी कंपनियों में लगाया जाता है जो पशुओं का परीक्षण करती हैं।
  • दूसरी तरफ पशु कल्याण संस्था का कहना था कि उसे अशिष्ट बर्ताव के चलते निकाला गया था। साथ ही वह ब्रिटेन में लोमड़ी के शिकार और अन्य प्रकार के मनोरंजक शिकार पर प्रतिबंध आरोपित करने के पक्ष में भी था।
  • इसी संदर्भ में न्यायाधिकरण को यह निर्धारित करना था कि एथिकल वीगनिज़्म (Ethical Veganism) धार्मिक या दार्शनिक विश्वास जो समानता अधिनियम, 2010 में वर्णित है उन मानदंडों के अनुकूल है या नहीं।
  • रोज़गार न्यायाधिकरण के न्यायाधीश रॉबिन पोस्ले ने निर्धारित किया कि ब्रिटेन के कानून में समानता अधिनियम, 2010 (The Equality Act, 2010) द्वारा जिन दार्शनिक विश्वासों के प्रति भेदभाव न करने की सुरक्षा दी गई है उनमें एथिकल वीगनिज़्म (Ethical veganism) भी शामिल है अर्थात् किसी भी दार्शनिक विश्वास के लिये जो मानदंड निर्धारित हैं वे सभी एथिकल वीगनिज्म में भी देखे जाते हैं।

एथिकल वीगनिज़्म (Ethical Veganism):

  • ऑक्सफोर्ड हैंडबुक ऑफ फूड एथिक्स में ‘द एथिकल केस फॉर वेजनिज्म’ के अनुसार, एथिकल वीगनिज़्म शाकाहारी जीवन-शैली (Vegan-Lifestyle) के लिये एक सकारात्मक नैतिक मूल्यांकन प्रदान करता है।
  • एथिकल वीगनिज़्म में पशुओं से प्राप्त होने वाले उत्पादों के साथ- साथ दूध का बहिष्कार करना भी शामिल है।

एथिकल वेजीटेरियनिज़्म ओर एथिकल वीगनिज़्म में अंतर

  • एथिकल वेजीटेरियननिज़्म और एथिकल वीगनिज़्म जानवरों से बने उत्पाद एवं जानवरों के द्वारा बनाये गए उत्पादों के बीच अंतर स्पष्ट करते हैं।
  • एथिकल वेजीटेरियनिज़्म (Ethical Vegetarianism) में पशुओं से बनने वाले उत्पादों का विरोध होता है, अर्थात् कोई भी ऐसा उत्पाद जिसे जीव हत्या के बाद प्राप्त किया गया हो जैसे- मांस , चमड़े के पर्स, बेल्ट इत्यादि वहीं दूसरी ओर एथिकल वीगनिज़्म (Ethical Veganism) में पशुओं (बिना जीव हत्या के) से प्राप्त होने वाले उत्पादों का बहिष्कार शामिल है जैसे- दूध,अंडे पनीर इत्यादि।

एथिकल वीगनिज़्म के दो मुख्य प्रकार हैं:

  • व्यापक निरपेक्षवादी वीगनिज़्म (Broad Absolutist Veganism)
  • विनम्र नैतिक वीगनिज़्म (Modest Ethical Veganism).

व्यापक निरपेक्षवादी वीगनिज़्म में पशुओं द्वारा निर्मित किसी भी उत्पाद का प्रयोग पूर्ण रूप से वर्जित होता है, जबकि विनम्र एथिकल वीगनिज़्म में कुछ पशुओं के द्वारा निर्मित उत्पादों (बिल्ली,कुत्ता,गाय, सूअर आदि) के प्रयोग पर ही पाबंदी होती है।

क्या है ब्रिटेन समानता अधिनियम, 2010:

  • ब्रिटेन समानता अधिनियम, 2010 कार्य स्थल और समाज में लोगों को व्यापक भेदभाव किये जाने से बचाता है। सेवाओं और सार्वजनिक कार्यों में नागरिकों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष भेदभाव एवं उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करता है।
  • वेतन संबंधी गोपनीयता कानूनों को लागू करने योग्य बनाना, रोज़गार न्यायाधिकरणों को व्यापक कार्यबल को लाभान्वित करने वाली सिफ़ारिशें करने की शक्ति देना और धर्म या विश्वास को संरक्षण प्रदान करने की शक्ति प्रदान करना अधिनियम की विशेषताओं में शामिल है।
  • अधिनियम में किसी भी विश्वास को धार्मिक या दार्शनिक विश्वास के रूप में परिभाषित किया गया है। चूँकि रोज़गार न्यायाधिकरण ने फैसला सुनाया है कि नैतिकतावाद एक दार्शनिक विश्वास है, अत: उपरोक्त नायधिकरण द्वारा दिया गया निर्णय, एथिकल वीगनिज़्म को भी संरक्षण प्रदान करता है।
  • धर्म या विश्वास समानता अधिनियम, 2010 द्वारा प्रदत्त नौ ‘संरक्षित विशेषताओं’ में से एक है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 10 जनवरी, 2020

भारोत्तोलक सरबजीत कौर पर प्रतिबंध

महिला भारोत्तोलक सरबजीत कौर पर राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी (NADA) ने डोपिंग के कारण 4 वर्ष का प्रतिबंध लगा दिया है। राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी के अनुसार, डोपिंग रोधी अनुशासन समिति ने सरबजीत कौर को डोपिंग के नियमों का उल्लंघन करने का दोषी पाया है। ज्ञात हो कि इससे पूर्व भी सरबजीत कौर को प्रतिबंधित पदार्थ के सेवन का दोषी पाया गया था। NADA की स्थापना का मुख्य उद्देश्य देश भर में खेलों में ड्रग्स और प्रबंधित पदार्थों के बढ़ते चलन को रोकना है। यह एक गैर-सरकारी संस्था है जिसका गठन वर्ष 2005 में किया गया था।

जम्मू-कश्मीर से जल्द हटेंगे प्रतिबंध

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के पश्चात् केंद्र सरकार की ओर से लगाए गए तमाम प्रतिबंधों पर उच्चतम न्यायालय ने फैसला देते हुए कहा है कि इस सभी प्रतिबंधों की आगामी 7 दिनों के भीतर समीक्षा की जानी चाहिये। उल्लेखनीय है कि इन प्रतिबंधों में नेताओं के आवागमन पर रोक और इंटरनेट शटडाउन आदि शामिल हैं। न्यायालय ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि इंटरनेट का प्रयोग अभिव्यक्ति के अधिकार का हिस्सा है और इससे अनिश्चित काल के लिये बंद नहीं किया जा सकता। साथ ही न्यायालय ने कहा है कि धारा-144 का प्रयोग किसी विचार को दबाने के लिये हथियार के रूप में नहीं किया जाना चाहिये।

सामिया नसीम

भारतीय मूल की अमेरिकी नागरिक सामिया नसीम को अमेरिका के अटॉर्नी जनरल विलियम बर ने शिकागो के जज के पद पर नियुक्त किया है। इससे पूर्व सामिया नसीम ने न्यूयॉर्क और शिकागो में इमीग्रेशन एवं सीमा शुल्क परिवर्तन विभाग तथा होमलैंड सुरक्षा विभाग के सहायक मुख्य वकील के तौर पर कार्य किया है। सामिया नसीम न्यूयॉर्क के स्टेट बार की भी सदस्य हैं।

विश्व हिंदी दिवस

10 जनवरी को विश्व भर में हिंदी दिवस का आयोजन किया जाता है। आधिकारिक तौर पर हिंदी दिवस की शुरुआत वर्ष 2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह द्वारा की गई थी। विश्व हिन्दी दिवस का मुख्य उद्देश्य विश्व भर में हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देना था। गौरतलब है कि विश्व भर के कई विश्वविद्यालयों में हिंदी एक विषय के तौर पर पढ़ाई जाती है। हिंदी भाषा को लेकर हिंदी के प्रसिद्ध स्तंभकार भारतेन्दु हरिश्चंद्र की निम्न पंक्तियाँ कालजयी है-

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।

बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।

🎯23 JULY 2018 ALL IN ONE 🏵️

💥22 जुलाई  💥🥇

images (4)

💥ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार 22 जुलाई वर्ष का 203 वाँ (लीप वर्ष में यह 204 वाँ) दिन है। साल में अभी और 162 दिन शेष हैं।💥

💥22 जुलाई की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ💥

1999 – अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा समान कार्य के लिए समान पारिश्रमिक की कार्य योजना लागू।

2001 – शेर बहादुर देउबा नेपाल के नये प्रधानमंत्री बने, समूह-आठ देशों का जिनेवा में सम्मेलन सम्पन्न।

2004 – शांति के लिए 1976 में नोबेल पुरस्कार जीतने वाली बैटी बिलियम्स मैक्सिको में गिरफ़्तार।

2005 – आतंकवादी होने के सन्देह में लंदन पुलिस ने निर्दोष ब्राजीली नागरिक जीन चार्ल्स डे-मेंसेज को मार गिराया।

2008 – पाकिस्तान के परमाणु वैज्ञानिक अब्दुल कादिर ख़ान ने एक अदालत में अपने ख़िलाफ़ लगे प्रतिबन्धों हेतु पुनर्विचार याचिका दायर की।

1947 – भारत का राष्‍ट्रीय ध्‍वज 22 जुलाई, 1947 को भारत के संविधान द्वारा अपनाया गया था।

2009 – 22 जुलाई 2009 का सूर्यग्रहण 29वीं सदी का सबसे लंबा पूर्ण सूर्यग्रहण था।

💥22 जुलाई को जन्मे व्यक्ति💥

1923 – मुकेश, प्रसिद्ध पार्श्व गायक

1965 – संदीप पांडेय – ‘रेमन मैगसेसे पुरस्कार’ से सम्मानित प्रसिद्ध भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता।

1898 – विनायकराव पटवर्धन – प्रसिद्ध शास्त्रीय संगीत गायक

1970 – देवेन्द्र फडणवीस, महाराष्ट्र के 18वें मुख्यमंत्री

1959 – अनंत कुमार – भारतीय जनता पार्टी से संबंधित, प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ एवं वर्तमान कैबिनेट मंत्री (रसायन और उर्वरक)

1894 – सरदार तेजा सिंह अकरपुरी – पहली लोकसभा के सदस्य।
🌻⭕️❗️🌷⭕️🌷🌻❗️⭕️🌻🌷❗️❗️🌷

21 July 2018
——————————-

Current Affairs 21st July 2018: Daily GK Update

National News

1. नई दिल्ली में GST परिषद की 28 वीं बैठक आयोजित
i. अंतरिम वित्त मंत्री पियुष गोयल की अध्यक्षता वाली GST परिषद की 28 वीं बैठक नई दिल्ली में संपन्न हुई. परिषद ने अपने एजेंडे पर कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार-विमर्श किया, जिसमें कई वस्तुओं पर दर संशोधन, GST कानून में संशोधन, रिटर्न की सरलीकरण, और दिल्ली में राष्ट्रीय अपीलीय न्यायाधिकरण की स्थापना शामिल है.
ii. जीएसटी की फिटमेंट कमेटी ने सैनिटरी नैपकिन और संगमरमर या पत्थर से बने देवताओं की मूर्तियों पर GST छूट की सिफारिश की है. इसने इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं में बांस फ़्लोरिंग, बर्फ बनाने की मशीन, वेंडिंग मशीन, वॉटर कूलर इत्यादि जैसी अन्य वस्तुओं में कटौती के साथ इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं में लिथियम-आयन बैटरी के लिए जीएसटी स्लैब में कमी की भी सिफारिश की है.

2. आंध्र प्रदेश ने ई-प्रगति कोर प्लेटफॉर्म लॉन्च किया
i. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने उंडवल्ली में ‘ई-प्रगति कोर मंच’ लॉन्च किया. एक अग्रेषित डिजिटल पहल ई-प्रगति का उद्देश्य नागरिकों को 34 विभागों, 336 स्वायत्त संगठनों और 745 अधिक सेवाओं से जोड़ना है.
ii. इस परियोजना के माध्यम से, राज्य सरकार ‘Sunrise AP 2022‘ की दृष्टिकोण को प्राप्त करने की इच्छा रखती है. ई-प्रगति प्राधिकरण ई-गवर्नेंस, सामाजिक सशक्तिकरण, कौशल विकास, शहरी विकास, बुनियादी ढांचा, औद्योगिक विकास और सेवा क्षेत्र के क्षेत्रों में शुरू किए गए सात विकास मिशनों का समर्थन करके परियोजना के लक्ष्यों को प्राप्त करेगा.
SBI PO/Clerk परीक्षा 2018 के लिए उपरोक्त समाचार से परीक्षा उपयोगी तथ्य
  • बनवारलाल पुरोहित तमिलनाडु के वर्तमान गवर्नर हैं.
  • ईएसएल नरसिम्हा आंध्र प्रदेश के वर्तमान गवर्नर हैं.
3. सरकार ने वाहन चोरी की जांच के लिए माइक्रोडॉट प्रौद्योगिकी शुरू की
i. भारत सरकार ने एक नई माइक्रोडॉट प्रौद्योगिकी के लॉन्च की घोषणा की है जो वाहन चोरी पर जांच करने में मदद करेगी. इसके तहत, वाहन पहचान संख्या वाले हजारों छोटे बिंदुओं की लेजर नक़्क़ाशी को इंजन सहित पूरे वाहन पर छिड़काया जाएगा.
ii. इस तकनीक को अभी तक उच्चतम ऑटोमोबाइल तकनीकी मानक बनाने वाले निकाय,केंद्रीय मोटर वाहन नियम – तकनीकी स्थायी समिति(CMVR-TSC) द्वारा अंतिम रूप दिया जाना है.

International News

4. 8 वीं BRICS स्वास्थ्य मंत्रियों की बैठक डरबन, दक्षिण अफ्रीका में आयोजित की गई
i. 8 वीं BRICS स्वास्थ्य मंत्रियों की बैठक डरबन, दक्षिण अफ्रीका में आयोजित की गई है. भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री श्री जे पी नड्डा ने किया. उन्होंने कहा कि भारत 2025 तक टीबी को समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है.
ii. स्वास्थ्य क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि देश में मातृत्व मृत्यु दर (MMR) में 77 प्रतिशत की कमी आई है, यह दर 1990 में प्रति 100000 जीवित जन्म में 556 थी, जो 2016 में घटकर प्रति 100000 जीवित जन्म में 130 हो गई है. इस उपलब्धि की सराहना WHO दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्रीय कार्यालय (SEARO) के क्षेत्रीय निदेशक ने भी की है.
SBI PO/Clerk परीक्षा 2018 के लिए उपरोक्त समाचार से परीक्षा उपयोगी तथ्य-
  • BRICS देशो में चीन, ब्राजील, रूस, भारत और दक्षिण अफ्रीका शामिल है.
  • दिसंबर 2010 में, चीन ने अध्यक्ष के रूप में, दक्षिण अफ्रीका को BRIC में शामिल होने और चीन के सान्या में शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया.
  • पहला BRIC शिखर सम्मेलन जून 200 9 में रूस के येकाटेरिनबर्ग में आयोजित किया गया था
5. चौथा BIMSTEC शिखर सम्मेलन काठमांडू में आयोजित किया जाएगा
i. चौथा BIMSTEC शिखर सम्मेलन काठमांडू, नेपाल में आयोजित किया जाएगा. इस संबंध की घोषणा नेपाल के विदेश मामलों के मंत्री प्रदीप कुमार ग्यावली द्वारा की गयी.इस शिखर सम्मेलन का मुख्य केंद्रण सड़कों, वायुमार्गों और संचरण लाइनों सहित BIMSTEC देशों के बीच कनेक्टिविटी बढ़ाने का होगा..
ii. BIMSTEC एक क्षेत्रीय आर्थिक समूह है जिसमें बंगाल की खाड़ी के निकटवर्ती इलाके में स्थित सात सदस्य देश शामिल हैं जो एक समान क्षेत्रीय एकता का गठन करते हैं..
SBI PO/Clerk परीक्षा 2018 के लिए उपरोक्त समाचार से परीक्षा उपयोगी तथ्य-
  • BIMSTEC का पूर्ण रूप Bay of Bengal Initiatives for Multi-Sectoral, Technical and Economic Cooperation है.
  • समूह का गठन 1997 में हुआ था और इसमें बांग्लादेश, भूटान भारत, नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार और थाईलैंड शामिल है.
  • नेपाल BIMSTEC की वर्तमान अध्यक्ष है
6. फेसबुक 2019 में ‘एथेना’ उपग्रह लॉन्च करेगा
i. फेसबुक ने पुष्टि की है कि वह एथेना नामक एक नये उपग्रह परियोजना पर कार्य कर रहा है, जो ग्रामीण और अनुचित क्षेत्रों को ब्रॉडबैंड इंटरनेट कनेक्शन प्रदान करेगी.
ii. कंपनी का उद्देश्य 2019 की शुरुआत में इस उपग्रह को लॉन्च करना है. 2016 में, स्पेसएक्स के रॉकेट में विस्फोट के कारण अफ्रीका के लिए फेसबुक का इंटरनेट उपग्रह खो गया था.

Business News

7. फ्लिपकार्ट और हॉटस्टार ने संयुक्त रूप से एक विज्ञापन प्लेटफार्म लांच किया
i. भारत के सबसे बड़े ऑनलाइन रिटेलर फ्लिपकार्ट ने वीडियो स्ट्रीमिंग सेवा हॉटस्टार के साथ एक गठबंधन बनाते हुए एक वीडियो विज्ञापन मंच लॉन्च किया है. यह तेजी से बढ़ते वीडियो विज्ञापन व्यवसाय से अधिक राजस्व उत्पन्न करने के लिए एक व्यापक रणनीति का हिस्सा है.
ii. नया मंच, शॉपर ऑडियंस नेटवर्क, ब्रांडों को हॉटस्टार पर व्यक्तिगत वीडियो विज्ञापनों के माध्यम से उपभोक्ताओं को लक्षित करने की अनुमति देगा.

Sports News

8. एलिसन बेकर बने दुनिया के सबसे महंगे गोलकीपर
i. ब्राजील के एलिसन बेकर विश्व के सबसे महंगे गोलकीपर बन गए हैं उन्होंने इटली के रोमा से इंग्लैंड के लिवरपूल क्लब में £ 56 मिलियन के विश्व रिकॉर्ड के साथ स्थानांतरित किया है. 25 वर्षीय ब्राजीलियाई ने एडसन मोरास (34.7 मिलियन पाउंड, बेनफीका से मैनचेस्टर सिटी) को पीछे छोड़ दिया है.
ii. यह समझौता आगे £ 10 मिलियन जुड़ने के साथ £ 65 मिलियन तक बढ़ सकता है, जो यूईएफए चैंपियंस लीग के लिए लिवरपूल की योग्यता और भविष्य में विभिन्न प्रतियोगिताओं में प्राप्त जीत पर निर्भर करता है.
9. शुभंकर शर्मा एक बड़ी चैंपियनशिप में स्थान सुनिश्चित करने वाले सबसे कम आयु के भारतीय बने
i. स्कॉटलैंड के कार्नोउस्टी में 147वीं ओपन चैम्पियनशिप में एक अद्भुत बैक नाइन से शुभंकर शर्मा किसी भी बड़ी चैंपियनशिप में उपलब्धि हासिल करने वाले सबसे कम आयु के भारतीय गोल्फर बन गये है.
ii. 2007 मास्टर्स और 2015 ओपन चैंपियन, संयुक्त राज्य अमेरिका के जैच जॉनसन, लीडरबोर्ड के शीर्ष पर है.

Obituaries

10. छत्तीसगढ़ के पूर्व वित्त मंत्री रामचंद्र सिंहदेव का निधन
i. छत्तीसगढ़ के पूर्व और पहले वित्त मंत्री रामचंद्र सिंहदेव का रायपुर में निधन हो गया है.
ii. वह तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी के मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री थे.

SBI PO/Clerk परीक्षा 2018 के लिए उपरोक्त समाचार से परीक्षा उपयोगी तथ्य
  • छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री- रमन दास, गवर्नर- बलरामजी दास टंडन

– 20 July 2018

राष्ट्रीय समाचार

88 भारत-सहायता वाली आपातकालीन एम्बुलेंस सेवा जाफना, श्रीलंका में लॉन्च की गई:

i.21 जुलाई, 2018 को, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीलंका के लिए नई दिल्ली से आपातकालीन एम्बुलेंस सेवा शुरू करने की घोषणा की।
ii.उद्घाटन समारोह श्रीलंका के प्रधान मंत्री रानिल विक्रमसिंघे की उपस्थिति में जाफना, श्रीलंका में निर्धारित किया गया था।
iii.भारत ने पहले चरण में 7.6 मिलियन अमरीकी डालर और देश भर में परियोजना के विस्तार के लिए 15.2 मिलियन डॉलर का अनुदान दिया है।
iv.पहले चरण में 88 एम्बुलेंस दो प्रांतों के लिए और देश के सभी जिलों के लिए 209 एम्बुलेंस खरीदे गए हैं।
v.यह भारतीय आवास परियोजना के बाद श्रीलंका में सबसे बड़ी भारतीय अनुदान परियोजना है।
vi.श्रीलंका में भारत का योगदान लगभग 2.9 अरब अमेरिकी डॉलर है, जिनमें से 545 मिलियन अमेरिकी डॉलर शुद्ध अनुदान है।
श्रीलंका:
♦ राजधानी: कोलंबो और श्री जयवर्धनेपुरा कोटे।
♦ प्रधान मंत्री: रानिल विक्रमसिंघे।
♦ राष्ट्रपति: मैत्रीपाला सिरीसेना।
♦ मुद्रा: श्रीलंकाई रुपया।

केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा शुरू किया गया छात्र पुलिस कैडेट कार्यक्रम:Student Police Cadet Programme launched by Union Home Minister Rajnath Singh

Student Police Cadet Programme launched by Union Home Minister Rajnath SinghStudent Police Cadet Programme launched by Union Home Minister Rajnath Singh
Student Police Cadet Programme launched by Union Home Minister Rajnath Singh

Student Police Cadet Programme launched by Union Home Minister Rajnath Singh
Student Police Cadet Programme launched by Union Home Minister Rajnath Singh

i.21 जुलाई, 2018 को केंद्रीय गृह मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने राष्ट्रीय स्तर पर छात्र पुलिस कैडेट (एसपीसी) कार्यक्रम शुरू किया।
ii.इसका उद्देश्य स्कूलों और स्कूल के बाहर के माध्यम से छात्रों में मूल्यों और नैतिकता को बढ़ावा देना है।
iii.कार्यक्रम की कुल लागत 6 करोड़ रुपये है जहां शैक्षणिक सहायता, प्रशिक्षण और आकस्मिकता के लिए प्रत्येक स्कूल को 50,000 रुपये दिए जाएंगे।
iv.कार्यक्रम कक्षा 8 और 9 के छात्रों पर केंद्रित है।
v.इसमें दो प्रकार के विषय शामिल हैं: अपराध निवारण और नियंत्रण, मूल्य और नैतिकता।
vi.अपराध निवारण और नियंत्रण प्रमुख क्षेत्रों के तहत सामुदायिक पुलिस, सड़क सुरक्षा, सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ना, महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा, भ्रष्टाचार और आपदा प्रबंधन के खिलाफ लड़ना शामिल है।
vii.मूल्यों और नैतिकता के तहत प्रमुख क्षेत्र हैं: मूल्य और नैतिकता, बुजुर्गों का सम्मान, सहानुभूति, सहनशीलता, धैर्य, दृष्टिकोण, टीम स्पिरिट और अनुशासन।
संगठनों के मुख्यालय:
संगठन स्थान
संयुक्त राष्ट्र न्यूयॉर्क, यूएसए
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम नैरोबी, केन्या
यूनेस्को पेरिस, फ्रांस
यूनिसेफ न्यूयॉर्क, यूएसए
विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड

भारतीय ग्रामीण विरासत एवं विकास ट्रस्ट (आईटीआरएचडी) की नई दिल्ली में सातवीं वार्षिक आम सभा बैठक आयोजित हुई:
i.21 जुलाई, 2018 को भारतीय ग्रामीण विरासत एवं विकास ट्रस्ट (आईटीआरएचडी) की आज नई दिल्ली में सातवीं वार्षिक आम सभा बैठक आयोजित की गई।
ii.भारतीय ग्रामीण विरासत एवं विकास ट्रस्ट (आईटीआरएचडी)-ग्रामीण भारत में भारतीय विरासत एवं संस्कृति के संरक्षण के लिए समर्पित और भारत के सात राज्यों में काम कर रहा एक गैर सरकारी संगठन है।
iii.झारखंड में टेराकोटा मंदिरों, मालूति, दुमका के 17-19 वीं सदी के गांवों के संरक्षण कार्यों का श्रेय आईटीआरएचडी को जाता है। मालूति परियोजना का उद्घाटन प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने किया था।
iv.इस परियोजना में 108 मंदिरों में से 62 मंदिरों का जीर्णोद्धार शामिल है जो जीर्ण शीर्ण अवस्था में थे।
v.इस परियोजना की लागत लगभग 6.57 करोड़ रुपये है।

मेघालय युग: पृथ्वी के इतिहास में नवीनतम चरण को आईयूजीएस द्वारा मेघालय के चट्टान पर नाम दिया गयाMeghalayan Age: Newest phase in Earth’s history named after Meghalaya rock by IUGS

Meghalayan Age: Newest phase in Earth’s history named after Meghalaya rock by IUGSMeghalayan Age: Newest phase in Earth’s history named after Meghalaya rock by IUGS
Meghalayan Age: Newest phase in Earth’s history named after Meghalaya rock by IUGS

Meghalayan Age: Newest phase in Earth’s history named after Meghalaya rock by IUGS
Meghalayan Age: Newest phase in Earth’s history named after Meghalaya rock by IUGS

i.21 जुलाई, 2018 को, अंतर्राष्ट्रीय भूगर्भीय विज्ञान संघ के वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के इतिहास में एक नए अध्याय को मेघालय युग रूप में वर्गीकृत किया है।
ii.इसमें 4200 साल का इतिहास और जलवायु कार्यक्रम शामिल हैं जो 200 साल के सूखे का इशारा करता हैं जिसने मिस्र से चीन तक सभ्यताओं को बर्बाद कर दिया था।
iii.इससे मिस्र, सीरिया, फिलिस्तीन, मेसोपोटामिया, ग्रीस, सिंधु घाटी और यांग्त्ज़ी नदी घाटी में मानव प्रवासन हुआ।
iv.कारण समुद्र और वायुमंडलीय परिसंचरण में बदलावों के कारण माना जाता है।
v.मेघालय में एक गुफा से एक स्टेलेग्माइट से परिवर्तन पता चले हैं इसलिए इस अवधि को मेघालय युग नाम दिया गया है।
vi.मेघालय युग लंबी अवधि का हिस्सा है जिसे होलोसीन युग कहा जाता है जो 11,700 वर्षों से अधिक समय तक फैला हुआ है।
अंतर्राष्ट्रीय भूगर्भीय विज्ञान संघ (आईयूजीएस):
♦ मुख्यालय: बीजिंग, चीन
♦ स्थापित: पेरिस, फ्रांस (1961)
♦ अभिभावक संगठन: अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान परिषद

आयुष्मान भारत योजना को लागू करने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार और एनएचए ने समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए:
i.21 जुलाई, 2018 को, पश्चिम बंगाल सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य एजेंसी (एनएचए) के साथ आयुष्मान भारत-राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण मिशन को लागू करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।
ii.पश्चिम बंगाल स्वास्थ्य विभाग के मुख्य सचिव अनिल वर्मा ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए।
iii.इसके अनुसार, यह योजना तीसरे पक्ष के बीमा और राज्य संचालित ट्रस्ट, इंदु भूषण के ‘मिश्रित मोड’ के माध्यम से लागू की जाएगी।
iv.इसके अलावा, राज्य सरकार 11 लाख से अधिक परिवारों को अपनी मौजूदा स्वास्थ्य योजना के तहत लाभार्थियों की संख्या में बढ़ोत्तरी करेगी।
v.अब तक, आंध्र प्रदेश समेत 26 राज्यों ने आयुष्मान भारत-राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण मिशन को लागू करने के लिए समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं।

तमिलनाडु सरकार ने अंतर जाति जोड़ों की सुरक्षा के लिए 24 घंटे की हेल्पलाइन शुरू की:
i.21 जुलाई, 2018 को, तमिलनाडु सरकार ने अंतर जाति के जोड़ों की सहायता और सुरक्षा के लिए 24 घंटे की हेल्पलाइन निर्धारित की है।
ii.राज्य के सभी जिलों और शहरों में एक विशेष सेल बनाया गया है, जिसमें उत्पीड़न की शिकायतें प्राप्त करने के लिए जिला स्तर के अधिकारी शामिल हैं।
iii.अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और सिस्टम और नागरिकों के लिए मोबाइल ऐप दोनों में ऑनलाइन शिकायत पंजीकरण सुविधा है।
iv.यह पूरी तरह से ‘ऑनर किलिंग’ का उन्मूलन करने के लिए किया गया है।

हिमाचल प्रदेश सरकार ने सेब की खरीद के लिए बाजार हस्तक्षेप योजना (एमआईएस) के कार्यान्वयन को मंजूरी दी:
i.हिमाचल प्रदेश सरकार ने सेब की खरीद के लिए बाजार हस्तक्षेप योजना (एमआईएस) के कार्यान्वयन को मंजूरी दे दी है। यह योजना 20 जुलाई से 31 अक्टूबर 2018 तक लागू की जाएगी।
ii.एमआईएस को 2,29,136 मीट्रिक टन सेब की खरीद के लिए निष्पादित किया जाएगा। इसके लिए कीमत 7.50 रुपये प्रति किलो तय की गई है।
iii.हैंडलिंग शुल्क 2.75 रुपये प्रति किलो होगा और माना जाता है कि बिक्री प्राप्ति 3.50 रुपये प्रति किलो होगी।
iv.इस योजना के माध्यम से, सेब उत्पादकों की मांग के अनुसार 279 खरीद केंद्र खोले जाएंगे।
हिमाचल प्रदेश में कुछ वन्यजीव अभ्यारण्य:
♦ चूरधर अभयारण्य
♦ दरंगहाती अभयारण्य
♦ कलातोप खज्जर अभयारण्य

त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब ने पारंपरिक ‘खारची पूजा’ का उद्घाटन किया:Tripura Chief Minister Biplab Kumar Deb inaugurates traditional ‘Kharchi Puja’

Tripura Chief Minister Biplab Kumar Deb inaugurates traditional ‘Kharchi Puja’Tripura Chief Minister Biplab Kumar Deb inaugurates traditional ‘Kharchi Puja’
Tripura Chief Minister Biplab Kumar Deb inaugurates traditional ‘Kharchi Puja’

Tripura Chief Minister Biplab Kumar Deb inaugurates traditional ‘Kharchi Puja’
Tripura Chief Minister Biplab Kumar Deb inaugurates traditional ‘Kharchi Puja’

i.20 जुलाई 2018 को त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब ने त्रिपुरा में पुराण हबेली में 7 दिन लंबी ‘खारची पूजा’ का उद्घाटन किया।
ii.खारची पूजा प्राणियों की आत्माओं के पापों को शुद्ध करने के लिए एक वार्षिक त्यौहार है। यह मूल रूप से एक हिंदू आदिवासी त्यौहार था। अब यह सभी समुदायों और धर्म द्वारा मनाया जाता है।
iii.इसमें 14 देवताओं की विशेषता है: शिव, दुर्गा, विष्णु, लक्ष्मी, सरस्वती, कार्तिक, गणेश, ब्रह्मा, अभधी (पानी का देवता), चंद्र, गंगा, अग्नि, कामदेव और हिमाद्री (हिमालय)।
iv.खारची पूजा एक जुलूस के साथ शुरू किया। देवताओं की मूर्तियों और पुजारी को त्रिपुरा पुलिस कर्मियों द्वारा सुरक्षा प्रदान की गई
v.भक्त परंपरागत स्नान के लिए हावड़ा नदी के रास्ते पर जुलूस में शामिल हुए।
त्रिपुरा में कुछ राष्ट्रीय उद्यान:
♦ बादली तेंदुआ राष्ट्रीय उद्यान
♦ राजबारी राष्ट्रीय उद्यान

यूपी पुलिस ने अफवाहों की जांच के लिए डिजिटल स्वयंसेवक अभियान शुरू किया:
i.उत्तर प्रदेश पुलिस ने अफवाहों के मुद्दे को नियंत्रित करने और अवैध गतिविधियों को खत्म करने के लिए डिजिटल स्वयंसेवकों को साथ लेने का फैसला किया है।
ii.उत्तर प्रदेश पुलिस 1,469 पुलिस स्टेशनों में से प्रत्येक में 250 डिजिटल स्वयंसेवकों की सामाजिक मीडिया पर नकली खबरों के संचलन को नियंत्रित करने के लिए मदद लेगी।
iii.उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) ओ.पी.सिंह के मुताबिक यूपी पुलिस के पास 4,41,000 ट्विटर अनुयायी हैं, जो सोशल मीडिया पर सबसे सक्रिय हैं।

अंतरराष्ट्रीय समाचार

लंदन ने दुनिया के सबसे चलने योग्य शहर बनने के लिए कार्य योजना शुरू की:
i.लंदन के मेयर सादिक खान ने कहा है कि, उन्होंने ‘वाकिंग एक्शन प्लान’ लॉन्च करके लंदन को दुनिया का सबसे चलने योग्य शहर बनाने की योजना बनाई है।
ii.लंदन के वॉकिंग एक्शन प्लान का उद्देश्य लंदन में स्वास्थ्य को बढ़ाना और वायु प्रदूषण को कम करना है, जिसमें 8.8 मिलियन लोग रहते हैं।
iii.यह योजना 2041 तक 80% यात्राओं को पैर, साइकिल या सार्वजनिक परिवहन पर कराने के लिए व्यापक रणनीति का हिस्सा है।
iv.कार द्वारा यात्रा करने वालो की तुलना में जो लोग काम पर चल कर जाते है या साइकिल से जाते है उन्हें हृदय रोग या स्ट्रोक के कारण मृत्यु का बहुत कम जोखिम होता है।
v.विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया की 92% आबादी उन स्थानों पर रहती है जहां वायु प्रदूषण के स्तर सुरक्षित सीमा से परे हैं।
vi.यह योजना पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड (पीएचई) द्वारा समर्थित है। पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड (पीएचई) एक सरकारी निकाय है। यह स्वास्थ्य सुधारने के लिए हर दिन कम से कम 10 मिनट तेज चलने की सिफारिश करता है।
vii.यह एक व्यापक ‘स्वस्थ सड़क’ पहल का हिस्सा है। सादिक खान ने इस पहल में लगभग 2.2 अरब पाउंड (2.9 बिलियन डॉलर) निवेश करने का आश्वासन दिया है।
कुछ बैंकों की टैग लाइनें:
♦ धनलक्ष्मी बैंक – तन मन धन
♦ देना बैंक – विश्वसनीय परिवार बैंक
♦ ड्यूश बैंक – प्रदर्शन करने के लिए एक जुनून

म्यांमार अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन में शामिल हो गया, संगठन का 68 वां सदस्य बन गया:Myanmar joins International Solar Alliance; becomes 68th member of the Organization

Myanmar joins International Solar Alliance; becomes 68th member of the OrganizationMyanmar joins International Solar Alliance; becomes 68th member of the Organization
Myanmar joins International Solar Alliance; becomes 68th member of the Organization

Myanmar joins International Solar Alliance; becomes 68th member of the Organization
Myanmar joins International Solar Alliance; becomes 68th member of the Organization

i.21 जुलाई, 2018 को, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) में शामिल होने के बाद म्यांमार, गठबंधन का 68 वां सदस्य बन गया।
ii.नई दिल्ली में दिल्ली वार्ता में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए म्यांमार मंत्री क्याव टिन द्वारा आईएसए फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे।
iii.दोनों देशों द्वारा की गई अन्य द्विपक्षीय परियोजनाएं हैं:
-म्यांमार में सिट्टवे बंदरगाह के साथ मिजोरम को जोड़ने वाले कलादान मल्टीमोडाल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट।
-म्यांमार और थाईलैंड के साथ भारत को जोड़ने वाली त्रिपक्षीय राजमार्ग परियोजना।
-रहि-तिद्दीम रोड।
-रोहिंग्या शरणार्थी संकट के लिए रखाइन राज्य को आर्थिक और मानवीय सहायता प्रदान करना।
आईएसए के बारे में:
♦ 2015 में पेरिस जलवायु शिखर सम्मेलन में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रैंकोइस होलैंड ने इसे लॉन्च किया।
♦ उद्देश्य: सौर ऊर्जा का इष्टतम उपयोग करना।
♦ सदस्यता 121 देशों के लिए खुली है।
♦ बजट: 4.7 करोड़।
♦ मुख्यालय: ग्वाल पहाडी, गुरुग्राम, हरियाणा।

व्यापार और अर्थव्यवस्था

पॉवर ग्रिड ने निवेशक के रूप में ऊर्जा दक्षता के लिए कार्य करने के लिए यूपी पावर कॉर्प के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए:Power Grid signs MoU with UP Power Corp for energy efficiency to act as investor

Power Grid signs MoU with UP Power Corp for energy efficiency to act as investorPower Grid signs MoU with UP Power Corp for energy efficiency to act as investor
Power Grid signs MoU with UP Power Corp for energy efficiency to act as investor

Power Grid signs MoU with UP Power Corp for energy efficiency to act as investor
Power Grid signs MoU with UP Power Corp for energy efficiency to act as investor

i.21 जुलाई, 2018 को, पावर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया ने ऊर्जा दक्षता के लिए उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन (यूपीपीसीएल) के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।
ii.इसका उद्देश्य ऊर्जा दक्षता और कृषि मांग पक्ष प्रबंधन कार्यक्रम को पूरा करना है।
iii.इसमें यूपी के पूर्व और दक्षिण डिस्कॉम में कृषि पंप सेट का प्रतिस्थापन शामिल हैं।
iv.इन परियोजनाओं में पॉवर ग्रिड द्वारा 2,200 से 2,500 करोड़ रुपये का निवेश किया गया है।
v.इस प्रकार पावरग्रिड इस परियोजना के लिए एक निवेशक और एक परियोजना प्रबंधन परामर्शदाता (पीएमसी) के रूप में कार्य करेगा।
पावर ग्रिड:
♦ मुख्यालय: गुड़गांव, भारत।
♦ स्थापित: 23 अक्टूबर 1989।
♦ उद्देश्य: वितरण और ऊर्जा व्यापार।

नियुक्तियां और इस्तीफे

अरमान अली को विकलांग लोगों के रोजगार के संवर्धन के लिए राष्ट्रीय केंद्र (एनसीपीईडीपी) का कार्यकारी निदेशक नियुक्त किया गया:
1 9 जुलाई 2018 को, विकलांग लोगों के रोजगार के संवर्धन के लिए राष्ट्रीय केंद्र (एनसीपीईडीपी) ने कहा कि, उन्होंने अरमान अली को अपने कार्यकारी निदेशक के रूप में नियुक्त किया है।
ii.1 अक्टूबर 2018 को अरमान अली एनसीपीईडीपी के कार्यकारी निदेशक के रूप में प्रभारी होंगे। एनसीपीईडीपी के निदेशक जावेद अबीदी की 4 मार्च 2018 को छाती के संक्रमण के बाद मृत्यु हो गईं थी। वह 53 साल के थे।
iii.विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर राष्ट्रीय विकलांगता परामर्श में अरमान अली की नियुक्ति की घोषणा की गई। 23 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधियों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया था।
भारत में कुछ महत्वपूर्ण मंदिर:
♦ जगन्नाथ मंदिर – पुरी, ओडिशा
♦ इस्कॉन मंदिर – बेंगलुरु, कर्नाटक
♦ शनि शिंगनपुर नेवासा – अहमदनगर, महाराष्ट्र

विज्ञान व प्रौद्योगिकी

नासा द्वारा सैटेलाइट डेटा के वाणिज्यिक उपयोग को बढ़ावा देने के लिए ‘रिमोट सेंसिंग टूलकिट’ लॉन्च किया गया:
i.21 जुलाई, 2018 को, नासा ने सैटेलाइट डेटा का विश्लेषण करने में उपयोगकर्ताओं की सहायता के लिए एक ऑनलाइन टूलकिट ‘रिमोट सेंसिंग टूलकिट’ लॉन्च किया।
ii.यह एक साधारण प्रणाली प्रदान करता है जिससे यह उपयोगकर्ता इनपुट के आधार पर प्रासंगिक स्रोतों की त्वरित पहचान कर सकता है।
iii.इसका उपयोग अनुसंधान, व्यापार परियोजनाओं या संरक्षण प्रयासों के क्षेत्रों में किया जा सकता है।
iv.टूलकिट में नए टूल्स बनाने के लिए कोड उपलब्ध हैं।
v.पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों के नक्षत्र के माध्यम से, नासा प्रत्येक वर्ष डेटा के पेटाबाइट एकत्र करता है।
नासा:
♦ मुख्यालय: वाशिंगटन डी.सी., यूएसए।
♦ संस्थापक: ड्वाइट डी.आइज़ेनहोवर।
♦ स्थापित: 29 जुलाई 1958

There is no shortcut to ‘Eminence

V Ranganathan, (The writer is former professor,IIM-Bangalore)

No Indian university or institute has come in the top 100 of world university rankings. The Indian Institute of Technology, Delhi, comes highest at 179 in the global 2018 QS Top Universities rankings. So, it’s obvious that the regulatory bodies, the University Grants Commission and the All India Council for Technical Education (AICTE), have failed to spawn excellence. Instead, bureaucratic rigidity has nurtured mediocrity.So, how does one change this situation? The earlier UPA government chose to set up new IITs and IIMs, to take advantage of their brand value. The present NDA government passed the IIM Act in 2017, ostensibly to give autonomy to IIMs.

Another idea was to select ‘institutions of eminence’ (IoE) and to provide them similar autonomy, and fund the public institutes among them. Any institution that aspired for the IoE tag had to pay a processing fee of Rs 1 crore, of which Rs 75 lakh would be returned if rejected. In public perception, the IITs and IIMs are reputed institutes, but the latter missed out getting an IoE tag probably for not being multidisciplinary. This could have been avoided if the eligibility criteria had been clearly mentioned.

There were other steps in selection, such as evaluating each candidate’s programme of action (PoA). The proposed Jio University came under the ‘greenfield’ category. Whether excellence, or potential excellence, can be judged by promises alone is a moot point. A good PowerPoint presentation will not make up for excellence. There have also been questions about the selection committee members, as to how they are best suited to evaluate academic excellence. N Gopalaswami was chief election commissioner (CEC) with no claim to educational excellence.

He was appointed chancellor of Rashtriya Sanskrit Vidyapeetha, Tirupati, in 2015. Another committee member Pritam Singh was former director, IIM-Lucknow, even though the IIMs, de facto, were excluded for consideration. Which makes one come to the question: why is it that the five existing institutions that have been given the IoE tag —IIT-Bombay, IIT-Delhi, Indian Institute of Science (IISc), Bangalore, Birla Institute of Technology and Science (BITS) Pilani, and Manipal Academy of Higher Education — do not come out anywhere near the top 100 in global rankings? This is because, except for IISc, their reputation has been created by their students and not by their faculty, whereas elsewhere in the world, faculty contribution to reputation is a significant and primary factor.

In IITs and IIMs, there would be hardly 10 per cent of faculty who would have global recognition and, therefore, mobility. The new IIMs and IITs face severe faculty constraints. Unlike in the US, where better students join PhD programmes, in India, the BTechs of IITs and MBAs of IIMs don’t join doctoral programmes in the country. The programme is usually peopled by the second-tier students from universities. So, how to manufacture ‘excellent’ institutions? There are two models of excellence: the US and Singapore-Hong Kong-China models. In the US, mainly private universities have achieved excellence, supported by liberal funding by businessmen wanting to give back to society. In India, they build temples.

Of late, some private institutes and universities are coming up in a much smaller scale. In private universities, autonomy and accountability are two sides of the same coin. They are able to pursue the search for excellence through a ruthless process of weeding out. In Indian public sector institutions like IITs and IIMs, such ruthlessness is not possible. The Indian private sector has taken some halting steps of late, but it is yet to mature. However, the Singapore-Hong Kong-China model gives an important counter-example to our previous hypothesis of incompatibility of excellent performance and public ownership. There, the government pours in tonnes of money in universities, gives the dean complete autonomy to recruit faculty at global salaries — coupled with Asian cost of living — on a no-questions asked basis, but with a clear accountability for results in a reasonable period.

The experiment has produced moderate success. This is because these places, while able to fund liberally, can’t yet provide the ecosystem, and the network for faculty to be continuously productive. The accomplished ‘ethnic’ faculty, which comes from reputed institutions, return after a few years of ‘homestay’, mindful of the need for academic survival. Building excellence is not an easy process, even if you can pay for it. Given such odds, India seems to hold a simplistic idea about the path to excellence — that excellence can be allotted like a licence. So, easy options like name-changing, duplication, giving notional autonomy, etc, will not do. Like Parvati undertaking penance to marry Lord Shiva, there is no shortcut to eminence.


Date:23-07-18

नियुक्ति में देरी से अधिकरणों के काम पर पड़ रहा असर

सोमशेखर सुंदरेशन, (लेखक अधिवक्ता एवं स्वतंत्र परामर्शदाता हैं)

कानून की दुनिया का यह एक जाना-पहचाना सच है। जब किसी अधिकरण (न्यायाधिकरण) का सदस्य सेवानिवृत्त होता है तो उसके उत्तराधिकारी की पहचान तक नहीं हुई रहती है। इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वह अधिकरण कितना अहम है और उसकी प्रासंगिकता कितनी है? हाल ही में प्रतिभूति अपील अधिकरण (सैट) के पीठासीन अधिकारी ने पद छोड़ दिया। उसके पहले भी सैट में एक सदस्य की जगह कई महीनों से खाली पड़ी हुई थी। लेकिन बदले हुए हालात में सैट का काम कर पाना नामुमकिन हो गया है। अब सैट किसी भी मामले की अंतिम सुनवाई नहीं कर सकता है। इसकी वजह यह है कि अधिकरण के इकलौते सदस्य न्यायिक सदस्य नहीं हैं। किसी न्यायिक सदस्य की नियुक्ति नहीं होने तक सैट में केवल अंतरिम राहत देने और नई अपील स्वीकार करने का ही काम किया जा सकता है।प्रतिभूति बाजार संबंधी मामलों की अपील संस्था के तौर पर 1995 में सैट ने कामकाज शुरू किया था।

पूंजी बाजार नियामक सेबी की तरफ से दोषी कंपनियों पर लगाए जाने वाले अर्थदंड के खिलाफ सुनवाई करने की ताकत इस अधिकरण को दी गई थी। उसके बाद से सैट की भूमिका का विस्तार होता गया। उसे सेबी के सभी तरह के आदेशों के खिलाफ अपील सुनने का अधिकार मिला और पिछले कुछ वर्षों में उसे बीमा एवं पेंशन नियामक के आदेशों के खिलाफ भी अपील सुनने की शक्ति दे दी गई। सैट में केवल एक सदस्य होता था लेकिन कार्य-विस्तार होने से सदस्यों की संख्या बढ़ाकर तीन कर दी गई। सैट का पीठासीन अधिकारी सर्वोच्च न्यायालय का कोई वर्तमान या सेवानिवृत्त न्यायाधीश या किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश होता है। सैट को वित्तीय क्षेत्र के अपील अधिकरण के तौर पर काम करने के लिए डिजाइन किया गया है। संविधान संशोधन के आधार पर गठित आयकर अपील अधिकरण के उलट सैट का गठन सेबी अधिनियम में किए गए संशोधन के जरिये किया गया था। संसद से पारित दूसरे कानूनों ने समय के साथ सैट को खास क्षेत्राधिकार भी दे दिया।

सैट की भूमिका जहां काफी अहम है, वहीं यह नियामकों को दी गईं व्यापक प्रकृति की शक्तियों के खिलाफ नियंत्रण एवं संतुलन साधने का भी बेहद जरूरी काम करता है। इसके बावजूद यह निकाय रिक्तियों को भरने के मामले में उदासीनता का शिकार होता रहा है। केंद्र की सत्ता में बैठे राजनीतिक दलों के बदलने पर भी इस प्रवृत्ति में कोई बदलाव नहीं आता है। केवल एक बार सरकार ने इस बात का ध्यान रखा था कि पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति समय पर कर दी जाए। उसके पीछे भी शायद यह वजह थी कि तत्कालीन पीठासीन अधिकारी ने निर्धारित समय से पहले ही इस्तीफा दे दिया था जिससे वह मुद्दा राजनीतिक रंग लेने लगा था। आम तौर पर किसी भी पीठासीन अधिकारी या सदस्य की सैट से विदाई का समय पूर्व-निर्धारित होते हुए भी उनके उत्तराधिकार की कोई योजना नहीं तैयार होती है। जब किसी भी अदालत में एक न्यायाधीश को नियुक्त किया जाता है तो उसकी सेवानिवृत्ति की तारीख पता होती है। पदासीन व्यक्ति का कार्यकाल खत्म होने और उसकी सेवानिवृत्ति की तारीख भी पता होती है। इसके बावजूद उनकी जगह नए सदस्य की नियुक्ति की योजना का पूरी तरह अभाव रहता है।

इस लेखक ने एक बार बंबई उच्च न्यायालय में इस मामले में एक रिट याचिका दायर की थी। कई साल पहले सैट के सदस्य धीरे-धीरे सेवानिवृत्त हो गए थे और अधिकरण में केवल पीठासीन अधिकारी ही बचे रह गए थे। संसद ने भी इस एक सदस्यीय अधिकरण को बहु-सदस्यीय अधिकरण में तब्दील करने का कानून पारित कर पीठासीन अधिकारी को पंगु कर दिया। उस अधिकारी के एक उच्च न्यायालय का पूर्व मुख्य न्यायाधीश होने के बावजूद ऐसा हुआ था। सरकारें अक्सर कानून के उन प्रावधानों का सहारा लेती हैं जो पर्याप्त सदस्यों के अभाव में दिए गए अधिकरण के फैसलों का बचाव करते हैं। अगर सरकारी एजेंसियों को कारगर ढंग से चलाना है तो हमारे ही बनाए अधिकरणों में पर्याप्त सदस्यों की मौजूदगी सुनिश्चित करने के बारे में अग्रिम योजना की कमी की कोई गुंजाइश नहीं है। हालांकि उत्तराधिकारी की नियुक्ति संबंधी योजना का अभाव ही इकलौती बाधा नहीं है। मानव संसाधन की सहज समझ पर आधारित योजना का बुनियादी उल्लंघन करने वाले अजीबोगरीब प्रावधान भी सामने आए हैं। अगर एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश अधिकरण का सदस्य बनता है तो उसे नई नियुक्ति के एवज में मिलने वाले वेतन में से पेंशन की रकम काट ली जाएगी।

इस तरह का नियम होने से यह सवाल खड़ा होता है कि कोई भी व्यक्ति अधिकरण के सदस्य के तौर पर नियुक्त होने में आर्थिक रूप से उत्प्रेरित क्यों होगा? पेंशन लंबी सेवा के एवज में मिलने वाला भुगतान है जबकि नई नियुक्ति में वेतन नई जिम्मेदारियों के निर्वहन के पारिश्रमिक के तौर पर मिलता है। लेकिन किसी अधिकारी से यह सवाल पूछें तो वह वेतन राशि में से पेंशन की रकम काटने के तमाम कारण गिनाने लगेगा। उन्हें यह सोचना चाहिए कि इन नियमों में किस तरह बदलाव किए जाएं कि सही प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए तर्कसंगत परिस्थितियां पैदा की जा सकें। अगर कोई प्रतिष्ठान न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन की दिशा में काम करने के लिए गंभीर है तो उसे अमल में लाने की यह माकूल जगह है। फिलहाल वित्तीय क्षेत्र के नियामक काफी हद तक दीवानी अदालतों की शक्तियों से लैस हैं। सैट जैसे अपील अधिकरण में केवल एक सदस्य रह जाने से राहत देने और अंतरिम उपाय की अपीलों पर सुनवाई प्रभावित होगी। कारोबारी सुगमता के लिहाज से भी यह स्थिति अच्छी नहीं है।


Date:22-07-18

सूचना – अधिकार से डर क्यों ?

हरिमोहन मिश्र

शुक्र है कि फिलहाल सूचना के अधिकार कानून में संशोधन टल गया।इस संशोधन के जरिए सरकार केंद्र और राज्यों में सूचना आयुक्तों के कार्यकाल और वेतन-भत्ते तय करने में अपना अधिकार चाहती है। अभी 2005 के सूचना का अधिकार कानून में उनका पांच साल का तय कार्यकाल है और वेतन-भत्ते चुनाव आयोग के बराबर हैं। इस तरह एक मायने में सूचना आयुक्त का पद सरकार की दखल से परे है। सरकारी दलील है कि सूचना आयुक्तों को चुनाव आयोग के बराबर दर्जा देना मुनासिब नहीं है। लेकिन इससे तो सूचना आयुक्तों के मामले में सरकारी दखलअंदाजी बढ़ जाएगी। आरटीआई कार्यकर्ताओं का विपक्षी दलों की ये शंकाएं बेजा नहीं कही जा सकतीं कि इससे आरटीआई कानून कमजोर हो जाएगा और एक मायने में सूचना आयोग का संवैधानिक दर्जा भी खत्म-सा हो जाएगा। दरअसल लंबी हीला-हवाली और इंतजार के बाद पिछली यूपीए सरकार के दौरान देश में लोगों को सूचना का अधिकार (आरटीआई) 12 अक्टूबर 2005 को हासिल हुआ। लेकिन बाद में पिछली सरकार को भी यह रास नहीं आ रहा था।

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने तो 2013 में यह कहा भी कि सूचना के अधिकार का दुरु पयोग हो रहा है और यह सरकारी कामकाज में अडंगे की वजह बन रहा है। मनमोहन सरकार भी इसमें कुछ शतरे जोड़ने और कई मामलों को सूचना के अधिकार के दायरे से बाहर करने के लिए संशोधन लाने की बात करने लगी थी, लेकिन इस पर हंगामा उठा तो उसने अपनी वह योजना मुल्तवी कर दी थी। तब सूचना के अधिकार को ढीला करने की कोशिश का आरोप मढ़ने में भाजपा भी सबसे आगे थी। लेकिन आज सत्ता में होने पर उसकी बोली बदल गई है। हालांकि यह जरूर कहना होगा कि यूपीए और कांग्रेस नेतृत्व ने इस कानून का हमेशा पक्ष लिया और किसी तरह के फेरबदल से इनकार किया। मौजूदा एनडीए सरकार में तो सूचना देने से इनकार करने की कई मिसालें हैं।

जिस राफेल सौदे में विमानों के दाम में भारी इजाफे को लेकर विपक्षी दलों की ओर से शंकाएं उठ रही हैं, उसकी सूचना देने से इनकार करने की वजह फ्रांस से हुए गोपनीयता की संधि का हवाला दिया जा रहा है। यह दलील अगर जायज भी मान ली जाए तो ऐसी अनेक मिसालें हैं, जिसमें ऐसी सूचनाएं देने से भी संवेदनशीलता और गोपनीयता के नाम पर इनकार किया गया, जिनके लोगों की जानकारी में आने से लोकतंत्र की भावना ही मजबूत होगी। मसलन, सरकारी बैंकों के बड़े कर्जदारों के नाम क्यों नहीं जाहिर होने चाहिए। कुछेक जो मामले खुले भी हैं, वे घोटाले-घपलों के खुलने ही सार्वजनिक जानकारी में आ पाए हैं। असल में हर सार्वजनिक कामकाज पर लोगों की नजर रहने से वह अंकुश बना रहेगा, जो लोकतंत्र को सही रास्ते पर बनाए रखेगा। आरटीआई कानून को संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) में प्रदत्त बोली और अभिव्यक्ति की आजादी का ही विस्तार माना गया है। इस कानून के मौजूदा स्वरूप की जमीन तैयार करने में सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों की अहम भूमिका रही है।

सुप्रीम कोर्ट 24 जनवरी 1975 में बहुचर्चित उत्तर प्रदेश राज्य बनाम राजनारायण तथा अन्य मामले में ही इस पर जोर दे चुका था कि सूचना का अधिकार बोली और अभिव्यक्ति की आजादी का हिस्सा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था,‘‘इस देश के लोगों को हर सार्वजनिक काम, वह सब कुछ जो सार्वजनिक दायरे में सार्वजनिक पदाधिकारियों द्वारा किया जाता है, उसे जानने का अधिकार है। उन्हें हर सार्वजनिक लेन-देन के हर ब्योरे जानने का अधिकार है। बोली की आजादी की अवधारणा से निकला जानकारकार अधिकार बिना शर्त तो नहीं है, लेकिन यह ऐसी वजह है कि जब भी लेन-देन को गोपनीय बताया जाए तो सतर्क हो जाना चाहिए क्योंकि उसका सार्वजनिक सुरक्षा से कोई लेना-देना नहीं हो सकता। सामान्य रोजमर्रा के कामकाज को गोपनीयता के पर्दे में छुपाना सार्वजनिक हित में नहीं है।’ सुप्रीम कोर्ट उसके बाद भी कई मामलों में ये बातें दोहरा चुका है। यही नहीं, संयुक्त राष्ट्र भी कई बार अपने मानवाधिकार प्रस्तावों में सूचना का अधिकार मुहैया कराने की अपील करता रहा है।

दुनिया के कई देशों खासकर पश्चिमी यूरोप के देशों में सूचना के अधिकार को बेहद अहम माना जाता है। स्वीडन पहला देश है, जहां 1766 में लेखन और प्रेस की आजादी के रूप में सूचना के अधिकार पर अमल हुआ था। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र ने सूचना के अधिकार को मान्यता दी। संयुक्त राष्ट्र ने 1948 में इस प्रस्ताव को अपना लिया। संयुक्त राष्ट्र में 14 दिसम्बर 1946 को कहा गया, ‘‘सूचना का हक एक बुनियादी मानवाधिकार है और उन नागरिक स्वतंत्रताओं के लिए पारस पत्थर की तरह है, जिसे संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिष्ठित किया है।’ 16 दिसम्बर 1948 को ऐलान किए गए सार्वजनिक मानवाधिकार उद्घोषणा का अनुच्छेद 19 कहता है, ‘‘हर किसी को अपनी राय बनाने के लिए सूचना और विचारों के आदान-प्रदान की आजादी है।’यह इतिहास याद करने की वजह सिर्फ यह है कि सूचना का अधिकार लंबी जद्दोजहद के बाद हासिल हुआ है, इसलिए हमेशा उसके विस्तार पर जोर देने की दरकार है, न कि उस पर किसी तरह की पाबंदी लादने की। हमारे राष्ट्र और संविधान निर्माताओं ने बार-बार इस पर जोर दिया है कि सूचनाओं और जानकारियों का निरंतर प्रवाह ही लोकतंत्र को मजबूत करने और लोगों को अधिकारों के प्रति जागरूक बनाने का अहम जरिया है।

समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया ने तो मातृभाषा में सरकारी कामकाज की अनिवार्यता के पक्ष में इस दलील का विस्तार किया था। उन्होंने कहा था, ‘‘अदालतों में वकील अंग्रेजी में उसी तरह बोल देता है, जैसे कोई जादूगर अगड़म-बगड़म छू कह कर चमत्कृत कर देता है। अगर देश का आम आदमी की अपनी भाषा में ये सब काम होंगे तो वह समझ पाएगा कि क्या चल रहा है। संभव है कि वह भी कोई अनोखी दलील पेश कर सके। लेकिन वैसा होने पर हमारे सरकारी मुलाजिमों और वकील वगैरह का असर खत्म हो जाएगा, इसलिए वे अपने हित में पराई भाषा को बनाए रखना चाहते हैं।’जाहिर है, यह दलील वही है, जो लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए अहम है। इसी वजह से तथाकथित संवेदनशील और गोपनीय विषयों की सूची बेहद छोटी होनी चाहिए। यह सूची जितनी लंबी होगी, समझिए लोकतंत्र का दायरा उतना ही छोटा होगा। यह तभी होगा, जब सूचना मुहैया कराने की व्यवस्था किसी तरह की दखलअंदाजी से मुक्त होगी।

इसलिए सूचना के अधिकार और सूचना आयुक्तों का दर्जा, न्यायालयों, चुनाव आयोग से कमतर महत्त्व का नहीं है। सूचना आयुक्तों को सरकार के रहमोकरम पर नहीं, बल्कि अधिक स्वतंत्र और स्वायत्त करने की दरकार है, ताकि वे हर सार्वजनिक कामकाज, सार्वजनिक लेन-देन की जानकारियां लोगों को मुहैया कराने में सक्षम हों और हर सरकार को उनके फैसलों और निर्देशों पर अमल करना अनिवार्य हो। दरअसल, संशोधन तो यह होना चाहिए कि सूचना के अधिकार से वंचित करने वालों को दंडित किया जा सके। बेशक उसकी शर्ते तय होनी चाहिए क्योंकि दुरुपयोग की संभावना भी हमेशा बनी ही रहती है। ऐसे प्रावधान भी किए जाने चाहिए कि किसी सरकार या संसद के लिए अपनी बहुसंख्या के बल पर सूचना के अधिकार को ढीला करने की प्रक्रिया असान न हो। ठीक उसी तरह जैसे इमरजेंसी के बाद आई जनता पार्टी की सरकार के दौरान संविधान संशोधन के जरिए इमरजेंसी लगाने और नागरिक स्वतंत्रताओं को मुल्तवी करने को लगभग असंभव-सा बना दिया गया था। क्या सरकार और तमाम राजनैतिक पार्टयिां इस ओर ध्यान देंगी!


Date:21-07-18

भ्रष्टाचार के विरुद्ध

संपादकीय

आर्थिक अपराधों को अंजाम देकर विदेश भाग जाने के कई मामले सुर्खियों में आने के बाद ऐसे लोगों से निपटने के लिए कानून बनाने की कवायद तेज हो गई है। गुरुवार को राज्यसभा ने भ्रष्टाचार निरोधक कानून में संशोधन वाले विधेयक को मंजूरी दे दी। जबकि लोकसभा ने भगोड़ा आर्थिक अपराधी विधेयक, 2018 को ध्वनिमत से पारित कर दिया। हालांकि अभी इन दोनों विधेयकों को कानून की शक्ल लेने के लिए लंबी प्रक्रिया से गुजरना है, लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए कि यह काम तेजी से होगा और आर्थिक अपराध करने वालों पर नकेल कसी जा सकेगी। पिछले दो दशकों में देश में भ्रष्टाचार और आर्थिक अपराधों का ग्राफ जिस तेजी से बढ़ा है, वह काफी गंभीर है। इससे अर्थव्यवस्था को भी भारी नुकसान पहुंचता है। इतना ही नहीं, बढ़ता भ्रष्टाचार व्यवस्था पर से आमजन के विश्वास को भी कम करता है।

हालांकि घूसखोरी जैसे मामलों से निपटने के लिए कानून पहले से मौजूद थे, लेकिन ये कमजोर साबित हो रहे थे। जहां तक सवाल है आर्थिक अपराध करके भाग निकलने वालों का, तो ऐसे मामलों से निपटने के लिए पर्याप्त कानूनों की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी। यों भ्रष्टाचार निरोधक कानून करीब तीन दशक पुराना है। इसमें संशोधन की कवायद पांच साल पहले यानी 2013 में हुई थी। इस विधेयक को पहले संसदीय समिति के पास विचार के लिए भेजा गया था। उसके बाद विधि विशेषज्ञों की समिति और फिर 2015 में चयन समिति के पास भेजा गया। इस समिति ने 2016 में रिपोर्ट दी। पिछले साल इसे संसद में लाया में गया। इतने लंबे वक्त के बाद इस बार राज्यसभा से इसे हरी झंडी मिली है। अब इसे मंजूरी के लिए लोकसभा को भेजा जाएगा। पुराना कानून भ्रष्टाचार, घूसखोरी जैसे अपराधों से निपटने में कमजोर साबित हो रहा था। इसीलिए इसमें अब संशोधन करके इसे सख्त बनाने के प्रयास किए गए हैं। नए बिल में घूसखोरी को लेकर कड़े प्रावधान किए गए हैं।

इसमें एक मुख्य बात यह है कि अब तक घूस लेने वाले तो लपेटे में आ जाते थे, लेकिन घूस देने वालों का कुछ नहीं बिगड़ता था। लेकिन इस संशोधन विधेयक में अब घूस देने वाले को भी सजा का प्रावधान किया गया है। अगर कानून बन गया तो घूस देने वाले को भी कम से कम तीन साल और अधिकतम सात साल की सजा होगी। अगर घूस देने वाला किसी व्यक्ति किसी व्यावसायिक संस्थान से जुड़ा है तो वह भी जांच के दायरे में आएगा और ऐसे में विशेष अदालत के जज दो साल के भीतर ऐसे मामलों की सुनवाई सुनिश्चित करेंगे। लेकिन इस संशोधन विधेयक में कुछ प्रावधान ऐसे हैं जिनसे घूसखोर सरकारी अफसरों पर हाथ डालना जांच एजेंसियों के लिए आसान नहीं होगा। सीबीआइ या अन्य जांच एजेंसियां किसी भी अधिकारी के खिलाफ संबंधित प्राधिकारी की इजाजत के बिना मामला दर्ज नहीं कर सकेंगी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इस कानून में संशोधन घूस देने वालों पर शिकंजा कसने के लिए ही किया गया है! इसीलिए इसके दुरुपयोग की आशंकाएं खड़ी हुई हैं। सरकार और कानून प्रवर्तन एजेंसियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसे कानून का इस्तेमाल भ्रष्टाचार से निपटने में हो, न कि यह उत्पीड़न का हथियार बन जाए।

दूसरा कानून भगोड़े आर्थिक अपराधियों को लेकर है। विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चौकसी जैसे बड़े आर्थिक घोटालेबाजों के विदेश भाग जाने के बाद इनको भारत वापस लाने में सरकार को अब तक कोई कामयाबी हासिल नहीं हुई है। माल्या पर बैंकों का नौ हजार करोड़ रुपए से ज्यादा बाकी है। जबकि नीरव मोदी और मेहुल चौकसी पंजाब नेशनल बैंक का तेरह हजार करोड़ रुपए से ज्यादा पैसा लेकर भागे हैं। ऐसे अपराधियों से निपटने में सरकारी तंत्र लाचार साबित हुआ है। इन अपराधियों को वापस लाना बड़ी चुनौती है। इसलिए सरकार ने भगोड़े आर्थिक अपराधी विधेयक- 2018 को संसद में पेश कर कानून बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया है। इस विधेयक में ऐसे अपराधियों को भारत की कानूनी प्रक्रिया से बचने से रोकने, उनकी संपत्ति जब्त करने और उन्हें दंडित करने के प्रावधान किए गए हैं। इसमें ऐसे सभी भगोड़े आर्थिक अपराधी शामिल होंगे जो सौ करोड़ रुपए से ज्यादा का घोटाला कर भाग निकले हैं। ऐसे घोटाले और घूसखोरी जैसे अपराधों का इतिहास पुराना है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि ऐसे अपराधियों से निपटने के लिए जो कानून बहुत पहले होने चाहिए थे, उन्हें बनाने की दिशा में अब बढ़ा गया है।

Date:21-07-18

Put Period On It

Stop menstrual shaming of India’s daughters

TOI Editorials

An overwhelming majority of Indian girls and women don’t have access to modern menstrual products such as sanitary napkins or tampons. The privileged few who do, often find that avuncular sales people wrap these products up in dark polythene – as if this women’s business were like Medusa to the public gaze. This aversion of gaze and conspiracy of silence teaches girls from a young age that their bodily rhythm is a matter of shame, not only to be managed furtively but also to be punished in hush-hush ways.

Penalties are varied. It could mean missing school or a sports competition, being banned from the kitchen or the place of worship. Family itself teaches the stigma and other societal institutions perpetuate it. But the cost is high, painfully so. The shame has massive knock-on effects on how girls feel about their bodies as they grow. At best it may just mean a teenager missing swimming lessons, but at worst it stops that teenager from reaching her fullest adult potential. Especially given worryingly low employment levels for women, normalising menstruation as just another part of the healthful life cycle is imperative in India. Let’s raise our daughters to be self-assured, not shamefaced.

This is also fair and just. Unfortunately tradition continues to provide a massive alibi for gender discrimination in our society. Even in the ongoing legal battle over women of menstruating age being barred from entering the sanctum sanctorum of the Sabarimala temple, age-old practices are being cited. But in the 21st century women are no longer second-class citizens. Trying to squash them into that box, that really is the matter of shame.


Date:21-07-18

India’s east brims with enormous potential, government’s Purvodaya vision will ensure it bears fruit

Dharmendra Pradhan

Odisha in the 70s – the years of my childhood – was a place of much enchantment and innocence even as it was characterised by crumbling infrastructure, potholed roads and shoddy bridges. The same held true for most of the east and northeastern region (NER). Undoubtedly, much has changed since. However, it seems to me that the region remains pulsating with unmapped potential even as the rest of the country has moved forward.

If India’s eastern and northeastern flank (Assam, Arunachal Pradesh, Meghalaya, Mizoram, Manipur, Nagaland, Tripura, Sikkim, Odisha, Jharkhand, Chhattisgarh, Bihar and Bengal) were to be a country it would be the fifth largest bauxite producer, the seventh largest coal producer and the fourth largest iron ore producer in the world. Moreover, the east and NER has a young population while southern and western India is seeing an ageing population, in fact at a rate comparable to that of European nations.

To take advantage of these opportunities the need of the hour is to equip the population with market relevant skills aligned to our current needs. Our attempt is to provide the physical and intellectual infrastructure to empower youth. Around 2,578 ITIs with seat capacity of 6.18 lakh have been set up for 13 of these states. Additionally, for those seeking shorter training courses, there are more than 900 training centres spread across these regions offering courses under our flagship Pradhan Mantri Kaushal Vikas Yojana.

We have also established 154 Pradhan Mantri Kaushal Kendras to serve as multi-skill centres of excellence, with employment and self-employment linkages. Alongside, we have six National Skill Training Institutes in the region to drive training of trainers’ programmes; and an Indian Institute of Entrepreneurship to promote the “animal spirits” of entrepreneurial motivation for local youth. Further, towards recognising the diversity and uniqueness of our heritage we are pushing for certification of local artisans and craftsmen. We recently established a Skill-cum-Common Facility Centre in Cuttack to upskill and support the local filigree artisans and to provide training in this world-renowned art form.

Prime Minister Narendra Modi has justifiably declared that the growth of India is incomplete without the development of the east and NER. This conviction is articulated through the vision of Purvodaya – or re-emergence of the east – consisting of a range of policy reforms that fundamentally change the drivers of development in the region.

While we often disagree on many issues, Central and state governments must work together for development to reach the people. We have walked the talk with implementation of the 14th Finance Commission (FC) recommendations. In an unprecedented change of tax devolution the share of east plus northeast India in the divisible pool of Union taxes is 35.75% of the total pool, a big jump from 13th FC recommendations. States like Odisha have seen a quantum jump of tax devolution at 42% from the 32% recommended by 13th FC. Moreover, in the past two years, of the total number of LPG connections that have been released under PMUY more than half – 2.76 crore new connections – have gone to the east and NER.

To consolidate a trade platform in the region, work is ongoing as part of a $20 billion investment in Paradip and Dhamra ports, in areas like refinery, petrochemical, LNG terminal, a multi-modal logistics park and port expansion. For energy security, work on the ambitious 2,655 km Jagdishpur-Haldia & Bokaro-Dhamra Natural Gas Pipeline (JHBDPL) project – also known as the ‘Pradhan Mantri Urja Ganga’ project – is proceeding at full speed. GAIL is implementing the 721 km Barauni-Guwahati Pipeline (BGPL) to connect NER with the national gas grid.

JHBDPL to be commissioned by December 2020 and BGPL by December 2021 will witness much developmental work across the length of the pipelines. There will be synchronised development of city gas distribution in Varanasi, Patna, Ranchi, Jamshedpur, Bhubaneswar, Cuttack and Kolkata as well as revival of three fertilizer units along the pipeline route. Additionally, some oil PSUs have signed an MoU to develop a gas grid system with a pipeline of 1,500 km within NER.

I hope that in looking at our larger eastern region – which has much to offer in terms of a young demography, economic and trade opportunities, leapfrogging capabilities and human and natural resources – we see a region that has begun the journey of becoming what it is meant to be, where its people exude well-being.


Date:21-07-18

अतिशय उत्पादन की समस्या

टी. एन. नाइनन

भारत अकाल और कृषि उपज की कमी से अत्यधिक पैदावार तक की दूरी तय कर चुका है। देश में इस समय खाद्यान्न की इतनी उपज होती है जो हमारी खपत से बहुत ज्यादा है। चावल, चीनी, दूध की उपज तो जरूरत से ज्यादा है ही। कई बार टमाटर, प्याज और आलू की उपज के साथ भी ऐसी ही स्थिति हो जाती है। देश में फिलहाल 6.8 करोड़ टन गेहूं और चावल का भंडार है। यह जरूरी बफर स्टॉक के मानक से दोगुना है। दूध का उत्पादन आबादी बढऩे की दर से चार गुना तेजी से बढ़ रहा है। आलू पर भी यही बात लागू होती है। उसका उत्पादन एक दशक में 80 फीसदी तक बढ़ गया है। इस अवधि में आबादी बमुश्किल 20 फीसदी बढ़ी है। इस वर्ष 3.2 करोड़ टन चीनी का उत्पादन होने की उम्मीद है। जबकि देश में चीनी की खपत लगभग 2.5 करोड़ टन है। इसका परिणाम यह है कि दुग्ध उत्पादक कम कीमत होने का विरोध करते हुए टैंकरों में भरा हुआ दूध राजमार्गों पर बहा देते हैं। ऐसा गर्मियों के मौसम में देखने को मिला जब दूध का उत्पादन अपेक्षाकृत कम होता है। वे अवांछित आलू शीत गृहों में छोड़ देते हैं। भंडार गृहों के मालिक हजारों टन आलू को खुले में सडऩे के लिए छोड़ देते हैं।

खाद्य पदार्थों की प्रति व्यक्ति खपत कम होने के चलते देश के लिए इतना अधिक उत्पादन समस्या बन गया है। परंतु खपत के स्तर का सीधा संबंध आय के स्तर से है। सरकार खपत बढ़ाने के उपाय कर सकती है लेकिन परंतु प्रमुख खाद्यान्न पहले ही लागत के 10 फीसदी दाम पर बिक रहे हैं। आप दूध का इस्तेमाल स्कूलों में मध्याह्नï भोजन में करके उसकी खपत बढ़ा सकते हैं लेकिन इसके बावजूद दूध बचा रहेगा। आप निर्यात कर सकते हैं। भारत चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है। कुछ अन्य वस्तुओं के निर्यात में भी उसका अहम स्थान है। परंतु हमारी खेती प्रतिस्पर्धी नहीं है क्योंकि उत्पादकता कम है। चीन भारत से ढाई गुना अधिक टमाटर उगाता है जबकि उसका रकबा हमसे थोड़ा ही अधिक है। जब उत्पादकता बढ़ती है तो अधिशेष के निपटान की समस्या बढ़ जाती है। हम चीनी के मामले में ऐसा देख चुके हैं। चीनी मिलों के पास गन्ना किसानों की कई अरब रुपये की राशि बकाया है। परंतु सरकार निर्यात सब्सिडी और मिलों को चीनी भंडारण पर सब्सिडी देने का प्रस्ताव रख रही है जबकि गन्ने की कीमतों में इजाफा किया जा रहा है। इस बात को लेकर भी जागरूकता बढ़ी है कि हम चीनी और चावल जैसी जिन फसलों का निर्यात करते हैं उनकी खेती में बहुत अधिक पानी की जरूरत पड़ती है। गौरतलब है कि इस समय देश में भारी जल संकट चर्चा का विषय बना हुआ है।

हम किसी छोटे मोटे उपक्रम की बात नहीं कर रहे हैं। दूध का कारोबार वाहन उद्योग के बराबर यानी करीब 40 खरब रुपये की बिक्री का कारोबार है। चीनी कारोबार का आकार भी छोटा नहीं है। कुल मिलाकर टमाटर, प्याज और आलू का उत्पादन चावल के उत्पादन के तीन चौथाई के बराबर है। इन सारी चीजों में लाखों किसान शामिल हैं इसलिए यह मानवीय समस्या राजनीतिक चश्मे से देखी जाती है। न्यूनतम समर्थन मूल्य में हालिया बढ़ोतरी और दूध उत्पादन में सब्सिडी जैसी घटनाएं उसी राजनीतिक दृष्टिï का परिणाम हैं। इससे धान की खेती को बढ़ावा मिलेगा और दूध का उत्पादन बढ़ेगा। जबकि नीतियां ऐसी होनी चाहिए कि हम अतिशय उत्पादन की समस्या हल कर सकें।

सब्सिडी के अलावा सरकारी हस्तक्षेप से प्राय: कीमतों में बहुत अधिक इजाफा हो जाता है। अतिरिक्त भंडारण, मूल्य और परिचालन पर नियंत्रण होता है और किसानों की कर्ज माफी का सिलसिला शुरू होता है। यह सारी कवायद किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य दिलाने और उन्हें बाजार की विसंगतियों से बचाने की है। परंतु भारी लागत के बिना इनमें स्थायित्व नहीं है। दीर्घावधि के उपायों में अतिरिक्त उत्पादन वाली वस्तुओं के लिए मांग और आपूर्ति का मिश्रण तैयार करना, फसल में विविधता लाना, आयात की जाने वाली उपज की खेती करना आदि शामिल है। इस दिशा में हुई प्रगति अपर्याप्त है। दालों में वर्षों के ठहराव के बाद उत्पादन वृद्घि 4 फीसदी पर पहुंची है। तिलहन उत्पादन धीमा रहा है लेकिन वह भी पहले से बेहतर है। सबसे बढ़कर सरकार ने बजट में श्वेत क्रांति के तर्ज पर ऑपरेशन ग्रीन लाने की घोषणा की है। इसमें उत्पादन में सहकारिता को बढ़ावा दिया जाएगा और ताजा उपज का प्रसंस्करण किया जाएगा। अंतर आने में वक्त लगेगा लेकिन इसके अलावा कोई रास्ता भी नहीं है।


Date:20-07-18

न्याय न सिर्फ होना चाहिए, बल्कि न्याय होते हुए दिखना भी चाहिए

अपने देश में एक सर्वोच्च न्यायालय, 24 उच्च न्यायालय और लगभग 20,400 निचली अदालतें हैं।

विराग गुप्ता , (लेखक सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं)

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अदालतों की कार्यवाही के सीधे प्रसारण के लिए दायर अनेक जनहित याचिकाओं को पहले रद करने के बाद उन पर गौर करने का निर्णय स्वागतयोग्य है। संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत जनता को जल्द न्याय मिलने के मौलिक अधिकार के तहत, खुली अदालतों की कार्यवाही देखने का भी अधिकार है। विधानसभा और संसद की तरह यदि अदालतों की कार्यवाही का भी सीधा प्रसारण हो जाए तो देश में करोड़ों लोगों को जल्द न्याय मिलने की उम्मीद बढ़ सकती है। हर मुकदमे में यदि दो पक्षकार हों और हर पक्षकार के परिवार में औसतन चार सदस्य हों तो 2.86 करोड़ लंबित मुकदमों में देश के 25 करोड़ लोग मुकदमेबाजी से त्रस्त होंगे। इसमें उन लोगों की संख्या शामिल नहीं है जो नगर निगम इंस्पेक्टर, आयकर अधिकारी और पटवारी जैसे सरकारी अधिकारियों के नोटिस का जवाब देने में परेशान रहते हैं। अपने देश में एक सर्वोच्च न्यायालय, 24 उच्च न्यायालय और लगभग 20,400 निचली अदालतें हैं। मुकदमेबाजी के सभी पक्षकार यदि अदालतों की कार्यवाही में शामिल होने के लिए हर तारीख में आ जाएं तो अदालतों के साथ देश की अर्थव्यवस्था ही ठप पड़ जाएगी।

ऑल इंडिया जजेज एसोसिएशन के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 1991 में यह निर्णय दिया था कि आम जनता के हितों की सुरक्षा के लिए सर्वोत्तम कदम उठाया जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय में वर्ष 1990 और निचली अदालतों में 1997 से कंप्यूटरीकरण की शुरुआत के बाद तारीख पता करने और फैसले की नकल लेने के लिए अदालतों का चक्कर लगाने की जरूरत कम हो गई है। देश में सूचना क्रांति और उदारीकरण के शुरुआती दौर में 1989 से दूरदर्शन के माध्यम से लोकसभा और फिर राज्यसभा की कार्यवाही का प्रसारण शुरू होने के बावजूद अदालतों को इससे क्यों गुरेज है? सभी इससे परिचित हैैं कि कर्नाटक में विधानसभा चुनावों के बाद सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश के तहत शक्ति परीक्षण के दौरान विधानसभा की कार्यवाही का सीधा प्रसारण होने विधायकों की खरीद फरोख्त और अराजकता पर लगाम लगी थी। सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठ न्यायाधीशों द्वारा की गई प्रेस कांफ्रेंस के बाद लोगों की अदालती मामलों में दिलचस्पी बढ़ गई है। अदालतों की कार्यवाही का सीधा प्रसारण शुरू होने से देश में न्यायिक सुधारों को एक नया मुकाम मिल सकता है।

संविधान के अनुसार देश में खुली अदालतों का चलन है जिसे कोई भी व्यक्ति देख सकता है। कुछ निचली अदालतों में वीडियो रिकॉर्डिंग की शुरुआत भी हुई है और कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा 2015 के एक मामले में वीडियो रिकॉडिंग की अनुमति दी गई। सर्वोच्च न्यायालय के भीतर वकील और पत्रकारों को मोबाइल फोन के इस्तेमाल की इजाजत के बाद अदालती कार्यवाही का लिखित प्रसारण जब होने ही लगा है तो फिर सजीव प्रसारण को अब अनुमति मिलनी ही चाहिए। मुख्य न्यायाधीश और अटार्नी जनरल ने सर्वोच्च न्यायालय में मामले की सुनवाई के दौरान यह माना कि सीधा प्रसारण होने से वकीलों की जवाबदेही और न्यायिक अनुशासन में बढ़ोतरी होगी। दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस ढींगरा के अनुसार दीवानी कानून (सीपीसी) में 2002 के बदलाव के बाद मुकदमों में तीन बार से अधिक स्थगन नहीं होना चाहिए। इसके बावजूद कई मामलों में सौ से अधिक बार तारीख पड़ती है जो मुकदमों के बढ़ते बोझ का मुख्य कारण है।

वीडियो रिकॉर्डिंग से ऐसी गड़बड़ियां और अनावश्यक स्थगन पर लगाम लगेगी, क्योंकि न्यायाधीशों को ऊंची अदालतों का और वकीलों को अपने मुवक्किल का भय रहेगा। इससे आपराधिक मामलों में गवाह या अभियुक्त अपना बयान नहीं बदल पाएंगे। एक ही मामले पर देश की अनेक अदालतों में जनहित याचिका दायर करने के चलन को भी सीधे प्रसारण के माध्यम से रोका जा सकेगा। देश में सरकार सबसे बड़ी मुकदमेबाज है। वीडियो रिकॉर्डिंग होने के बाद सरकार भी यह सुनिश्चित कर पाएगी कि उनके मामलों में सही पैरवी हुई या नहीं? वीडियो रिकॉर्डिंग के बाद फर्जी डिग्री के आधार पर वकालत कर रहे वकीलों को मुकदमों में पेश होना मुश्किल हो जाएगा। तमाशबीनों की संख्या कम होने से अदालतें अपना काम और बेहतर तरीके से कर पाएंगी।

मुवक्किल, वकील, गवाह या आम जनता या अन्य पक्ष अपने मामलों की कार्यवाही की वीडियो रिकॉर्डिंग को शुल्क देकर हासिल कर सकेंगे। वीडियो रिकॉर्डिंग के इतने सारे फायदों के बाद न्यायाधीशों की संख्या में बढ़ोतरी के बगैर ही मुकदमों के ढेर को कम करने में मदद मिल सकती है। अदालतों की कार्यवाही के सीधे प्रसारण से न्यायिक क्रांति होने के साथ सही अर्थों में डिजिटल इंडिया का निर्माण संभव हो सकेगा। दुष्कर्म या राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे संवेदनशील मामलों के नाम पर सीधे प्रसारण में आपत्ति की जा रही है। कानून के अनुसार ऐसे मामलों में कैमरा कार्यवाही का प्रावधान है। जाहिर है कि इन मामलों की वीडियो रिकॉर्डिंग या सीधे प्रसारण पर स्वत: प्रतिबंध लग जाएगा। यूरोप, अमेरिका सहित विश्व के अनेक देशों में अदालतों की कार्यवाही का सीधा प्रसारण होता है। विश्व में सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का दावा करने वाले देश में अदालतों की कार्यवाही का सीधा प्रसारण नहीं होने से पूरी न्यायिक प्रक्रिया ही सवालों के घेरे में आ रही है।

दिल्ली में कचरे के पहाड़ पर सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से जवाब मांगा है, परंतु मुकदमों के बढ़ते ढेर के बीच करोड़ों लोगों की कचरा होती जिंदगी के लिए भी तो जवाबदेही लेनी होगी। गवर्नेंस के नाम पर देश की राजधानी दिल्ली में 18 लाख सीसीटीवी लगाने की मुहिम चलाने की बात हो रही है तो फिर न्यायिक क्रांति के लिए 20 हजार अदालतों में कैमरे लगाने पर किसे आपत्ति हो सकती है? सर्वोच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों की पूर्ण बेंच ने 1997 में यह प्रस्ताव पारित किया था कि न्याय न सिर्फ होना चाहिए, बल्कि न्याय होते हुए दिखना भी चाहिए। देश की सभी अदालतों में वीडियो रिकॉर्डिंग या सीधे प्रसारण की अनुमति देकर उस संवैधानिक संकल्प को पूरा करने का समय अब आ गया है।


Date:20-07-18

स्त्री का हक

संपादकीय

सर्वोच्च न्यायालय का ताजा फैसला स्त्रियों की एक बड़ी जीत है। यों तो हमारे संविधान ने जाति, धर्म, भाषा, लिंग आदि आधारों पर हर तरह के भेदभाव की मनाही कर रखी है। लेकिन हम देखते हैं कि सामाजिक असलियत कुछ और है। समाज में अनेक प्रकार के भेदभाव होते हैं, और इनमें सबसे ज्यादा व्यापक भेदभाव स्त्रियों के प्रति होता है। यह वैयक्तिक और पारिवारिक स्तर पर तो होता ही है, संस्थागत तौर पर भी होता है। केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर का मामला इसी तरह का है, जहां दस साल से पचास साल की आयु की स्त्रियों के प्रवेश पर पाबंदी रही है। मासिक धर्म से जुड़ी एक रूढ़ धारणा के आधार पर जमाने से थोपे गए या चले आ रहे इस प्रतिबंध को हटाने की मांग दशकों से होती रही है। लेकिन अब जाकर इसमें सफलता मिली है। सबरीमाला मंदिर में स्त्रियों के प्रवेश पर चले आ रहे प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए बुधवार को सर्वोच्च अदालत ने कहा कि मंदिर सार्वजनिक संपत्ति हैं; यदि पुरुषों को प्रवेश की अनुमति है तो फिर महिलाओं को भी मिलनी चाहिए; पूजा करना महिलाओं का संवैधानिक हक है और मंदिर में कोई भी जा सकता है। यह फैसला देकर अदालत ने हमारे संवैधानिक प्रावधानों की ही पुष्टि की है।

हमारा संविधान लैंगिक आधार पर किसी अवसर से वंचित किए जाने की इजाजत नहीं देता। यही नहीं, कानून के समक्ष समानता का सिद्धांत हमारे संविधान की एक मौलिक विशेषता रही है। अदालत का ताजा फैसला इसी के अनुरूप आया है। लेकिन इन संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद सबरीमाला में स्त्रियों के प्रवेश पर पाबंदी चलती रही, तो इसकी खासकर दो वजहें हैं। एक यह कि पूजा-पाठ और धार्मिक रीति-रिवाज के मामलों में पारंपरिक मान्यताएं ही काफी हद तक नियम-निर्धारण का काम करती रही हैं। दूसरे, हमारे संविधान ने भी धार्मिक स्वायत्तता का भरोसा दिलाया हुआ है। लेकिन समय के साथ जब पारंपरिक मान्यताओं के साथ द्वंद्व शुरू हुआ तो सबरीमाला मंदिर में स्त्रियों को भी प्रवेश की अनुमति देने की मांग जोर पकड़ती गई। अलबत्ता सबरीमाला मामले में केरल सरकार का रवैया एक-सा नहीं रहा। मसलन, राज्य सरकार ने 2015 में सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का समर्थन किया था, लेकिन 2017 में विरोध किया था। सबरीमाला मामले को महत्त्वपूर्ण मानते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने इसे पिछले साल पांच सदस्यीय संविधान पीठ को सौंप दिया। इस तरह के दो और चर्चित मामले थे- एक शनि शिंगणापुर का, और दूसरा, हाजी अली दरगाह का। अलग-अलग समुदाय से ताल्लुक रखने वाले इन दोनों धार्मिक स्थानों पर स्त्रियों के जाने की मनाही थी।

जब पाबंदी हटाने की मांग वाली याचिकाओं पर मुंबई उच्च न्यायालय में सुनवाई शुरू हुई तो प्रबंधकों और न्यासियों ने पारंपरिक मान्यताओं के अलावा धार्मिक स्वायत्तता के संवैधानिक प्रावधान की भी दलील पेश की थी। लेकिन उच्च न्यायालय ने वे सारी दलीलें खारिज कर दीं, और कानून के समक्ष समानता के सिद्धांत को तरजीह देते हुए पहले शनि शिंगणापुर में और फिर हाजी अली दरगाह में स्त्रियों के प्रवेश का रास्ता साफ कर दिया। अब वैसा ही फैसला सर्वोच्च अदालत ने सबरीमाला के मामले में सुनाया है। इससे जाहिर है कि भले संविधान ने धार्मिक स्वायत्तता की गारंटी दे रखी हो, पर इसकी सीमा है; धार्मिक स्वायत्तता वहीं तक मान्य है जब तक वह संविधान-प्रदत्त नागरिक अधिकारों के आड़े नहीं आती। इस फर्क को हमेशा ध्यान में रखा जाना चाहिए ताकि परंपरा और धार्मिक रीति-रिवाज कहीं भी सामाजिक समानता और नागरिक अधिकारों की अवहेलना का जरिया न बन पाएं।


9 मार्च CURRENT AAFFAIR TODAY

1. वैश्विक शहर संपदा सूचकांक में मुंबई को 47वां स्थान

एक स्वतंत्र वैश्विक सम्पत्ति परामर्शदाता ने वैश्विक शहर संपदा सूचकांक में भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई दुनिया भर में 314 शहरों में से 47 वें स्थान पर रखा है।

  • नाइट फ्रैंक की वेल्थ रिपोर्ट 2018 के अनुसार, शहर संपदा सूचकांक रैंकिंग के लिए चार प्रमुख संकेतकों – धन, निवेश, जीवन शैली और भविष्य को ध्यान में रखता है।
  • शीर्ष 20 वैश्विक शहरों के संदर्भ में, जहां 1 मिलियन डॉलर में केवल 92 वर्ग मीटर क्षेत्र खरीदा जा सकता है, मुंबई 16 वें स्थान पर रहा है।

2. मास्टरकार्ड महिला उद्यमियों के सूचकांक में भारत 52वें स्थान पर

मास्टरकार्ड महिला उद्यमी इंडेक्स (एमआईड्ब्ल्यूई) द्वारा जारी दूसरे संस्करण के निष्कर्षों के अनुसार भारत इसमें 57 देशों में 52वें स्थान पर रहा।

  • भारत के लिए नवीनतम रैंकिंग पिछले वर्ष से अपरिवर्तित बनी हुई है।
  • एमआईड्ब्ल्यूई महिला उद्यमियों के लिए अपने स्थानीय वातावरण में विभिन्न समर्थन शर्तों के माध्यम से प्रदान किए गए अवसरों को भुनाने की क्षमता पर केंद्रित है।

3. भारत नेपाल भूकंप पुनर्निर्माण के लिए संयुक्त राष्ट्र को 15.82 मिलियन डॉलर देगा

भारत ने बड़े पैमाने पर पुनर्निर्माण कार्यक्रम के लिए भूकंप-तबाह नेपाल को सहायता में 15.82 मिलियन डॉलर का आश्वासन दिया है।

  • भूकंप पीड़ितों के लिए 50000 घरों का निर्माण करने के लिए भारत ने संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और संयुक्त राष्ट्र कार्यालय प्रोजेक्ट सर्विसेज (यूएनओपीएस) के साथ इस संबंध में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।
  • समझौते के अनुसार, भारत सरकार यूएनओपीएस को 8.41 मिलियन अमरीकी डालर और यूएनडीपी को 7.41 मिलियन अमेरिकी डॉलर देगी।

4. प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय पोषण मिशन का शुभारंभ किया

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर राजस्थान के झुंझुनू में राष्ट्रीय पोषण मिशन का शुभारंभ किया और साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के विस्तार की शुरूआत भी की।

  • प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर कार्यक्रम की लाभार्थी माताओं और बालिकाओं से बातचीत भी की।
  • उन्होंने अभियान की सफलता के लिए उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले जिलों को प्रमाण पत्र प्रदान किये।

5. सरकार ने ‘सुविधा’ के लांच की घोषणा की

केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक और संसदीय कार्यमंत्री श्री अनंत कुमार ने प्रधानमंत्री भारतीय जन-औषधि परियोजना (पीएमबीजेपी) के तहत पूरी तरह ऑक्‍सो-बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी नैपकीन ‘सुविधा’ के लांच की घोषणा की।

  • यह किफायती सैनिटरी नैपकीन देश भर के 3200 जन-औषधि केंद्रों पर 2.50 रुपये प्रति पैड उपलब्‍ध होगी और यह भारत की वंचित महिलाओं के लिए स्‍वच्‍छता, स्‍वास्‍थ्‍य और सुविधा सुनिश्‍चित करेगी।
  • औषध विभाग द्वारा उठाया गया यह कदम सभी के लिए किफायती और गुणवत्‍ता वाले स्‍वास्‍थ्‍य सेवा उपलब्ध कराने की प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी की परिकल्‍पना को साकार करेगा।

6. महिला उद्यमियों के लिए उद्यम सखी पोर्टल का शुभारंभ

अंतर्राष्‍ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर सूक्ष्‍म ,लघु और मध्‍यम उद्यम मंत्रालय एमएसएमई की ओर से भारतीय महिला उद्यमियों के लिए http://www.udyamsakhi.org. के नाम से एक पोर्टल शुरु किया गया।

  • एमएसएमई राज्‍य मंत्री श्री गिरिराज सिंह ने एक कार्यक्रम मे पोर्टल का शुभारंभ किया।
  • श्री सिंह ने इस अवसर पर कहा कि‍ देश में इस समय 80 लाख ऐसी महिलाएं हैं जिन्‍होंने अपना कारेाबार शुरु किया है सफलातपूर्व उसे चला रही हैं। उन्‍होंने कहा कि‍ एमएसएमई मंत्रालय का मानना है कि भारतीय महिलाएं देश की आर्थिक प्रगति में अहम भूमिका निभा सकती हैं।
  • पोर्टल के जरिए एक ऐसा नेटवर्क बनाने का प्रयास किया गया है जिसके जरिए उद्यमशीलता को बढावा दिया जा सके और साथ ही महिलाओं को स्‍वालंबी और सशक्‍त बनाने के लिए कम लागत वाली सेवाओं और उत्‍पादों के लिए कारोबार के नए मॉडल तैयार किए जा सकें।

7. भारतीय रिजर्व बैंक ने एसबीआई पर 40 लाख रुपये का जुर्माना लगाया

भारतीय रिजर्व बैंक ने एसबीआई पर नकली नोटों को पहचानने के निर्देशों का पालन न करने के लिए 40 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है।

  • भारतीय रिज़र्व बैंक ने कहा है कि नकली नोटों के नियमों के साथ विनियामक अनुपालन में एसबीआई में कमी देखी गई है।
  • नियामक ने देश के सबसे बड़े ऋणदाता की दो शाखाओं के मुद्रा चेस्टों का निरीक्षण किया था और नकली नोटों को पहचानने और जब्त करने पर जारी किए गए अपने निर्देशों का उल्लंघन होते देखा था।

8. टीसीएस 2018 में सबसे तेजी से बढ़ता आईटी सेवा ब्रांड

अग्रणी ब्रांड वैल्यूएशन फर्म, ब्रांड फाइनेंस द्वारा किए गए मूल्यांकन में दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ते आईटी सेवा ब्रांड के रूप में अग्रणी आईटी सेवा संगठन, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज को नामित किया गया है।

  • 2018 के लिए ब्रांड फाइनेंस आईटी सर्विसेज 15 वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक, टीसीएस के पास कुल 10.391 बिलियन अमरीकी डालर का ब्रांड वैल्यू है; जो पिछले वर्ष से 14.4 प्रतिशत अधिक है।

9. नेफ्यू रियो ने नागालैंड के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली

नेफ्यू रियो ने नागालैंड के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली है। चुनावों में भाजपा और राष्ट्रवादी डेमोक्रेटिक पीपल्स पार्टी (एनडीपीपी) ने 29 सीटें जीती हैं।

  • यह नेफ्यू रियो का नागालैंड के मुख्यमंत्री के रूप में यह चौथा कार्यकाल होगा।
  • श्री रियो 2003 और 2014 के बीच तीन बार नागालैंड के मुख्यमंत्री रहे थे, जिससे वह नागालैंड के एकमात्र मुख्यमंत्री बने, जिन्होंने लगातार तीन बार पद की शपथ ली।

10. बालकृष्ण दोषी भारत के पहले प्रिटज़कर पुरस्कार विजेता बने

बालकृष्ण दोषी प्रिटज़कर पुरस्कार के चार दशक के इतिहास में इसे जीतने वाले पहले भारतीय वास्तुकार बन गये हैं।

  • नोबेल पुरस्कार के बराबर माना जाने वाला यह पुरस्कार दोषी को लगभग 70 वर्षों के कैरियर की मान्यता में दिया गया।
  • दोषी को कम लागत वाले आवास और सार्वजनिक संस्थानों को डिजाइन करने के लिए जाना जाता है।
  • उनकी सर्वाधिक प्रशंसित परियोजनाओं में अहमदाबाद में टैगोर मेमोरियल हॉल और अरन्या लो कॉस्ट हाउसिंग डेवलपमेंट हैं।

9 march 2018

1. वैश्विक शहर संपदा सूचकांक में मुंबई को 47वां स्थान

एक स्वतंत्र वैश्विक सम्पत्ति परामर्शदाता ने वैश्विक शहर संपदा सूचकांक में भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई दुनिया भर में 314 शहरों में से 47 वें स्थान पर रखा है।

  • नाइट फ्रैंक की वेल्थ रिपोर्ट 2018 के अनुसार, शहर संपदा सूचकांक रैंकिंग के लिए चार प्रमुख संकेतकों – धन, निवेश, जीवन शैली और भविष्य को ध्यान में रखता है।
  • शीर्ष 20 वैश्विक शहरों के संदर्भ में, जहां 1 मिलियन डॉलर में केवल 92 वर्ग मीटर क्षेत्र खरीदा जा सकता है, मुंबई 16 वें स्थान पर रहा है।

2. मास्टरकार्ड महिला उद्यमियों के सूचकांक में भारत 52वें स्थान पर

मास्टरकार्ड महिला उद्यमी इंडेक्स (एमआईड्ब्ल्यूई) द्वारा जारी दूसरे संस्करण के निष्कर्षों के अनुसार भारत इसमें 57 देशों में 52वें स्थान पर रहा।

  • भारत के लिए नवीनतम रैंकिंग पिछले वर्ष से अपरिवर्तित बनी हुई है।
  • एमआईड्ब्ल्यूई महिला उद्यमियों के लिए अपने स्थानीय वातावरण में विभिन्न समर्थन शर्तों के माध्यम से प्रदान किए गए अवसरों को भुनाने की क्षमता पर केंद्रित है।

3. भारत नेपाल भूकंप पुनर्निर्माण के लिए संयुक्त राष्ट्र को 15.82 मिलियन डॉलर देगा

भारत ने बड़े पैमाने पर पुनर्निर्माण कार्यक्रम के लिए भूकंप-तबाह नेपाल को सहायता में 15.82 मिलियन डॉलर का आश्वासन दिया है।

  • भूकंप पीड़ितों के लिए 50000 घरों का निर्माण करने के लिए भारत ने संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और संयुक्त राष्ट्र कार्यालय प्रोजेक्ट सर्विसेज (यूएनओपीएस) के साथ इस संबंध में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।
  • समझौते के अनुसार, भारत सरकार यूएनओपीएस को 8.41 मिलियन अमरीकी डालर और यूएनडीपी को 7.41 मिलियन अमेरिकी डॉलर देगी।

4. प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय पोषण मिशन का शुभारंभ किया

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर राजस्थान के झुंझुनू में राष्ट्रीय पोषण मिशन का शुभारंभ किया और साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के विस्तार की शुरूआत भी की।

  • प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर कार्यक्रम की लाभार्थी माताओं और बालिकाओं से बातचीत भी की।
  • उन्होंने अभियान की सफलता के लिए उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले जिलों को प्रमाण पत्र प्रदान किये।

5. सरकार ने ‘सुविधा’ के लांच की घोषणा की

केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक और संसदीय कार्यमंत्री श्री अनंत कुमार ने प्रधानमंत्री भारतीय जन-औषधि परियोजना (पीएमबीजेपी) के तहत पूरी तरह ऑक्‍सो-बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी नैपकीन ‘सुविधा’ के लांच की घोषणा की।

  • यह किफायती सैनिटरी नैपकीन देश भर के 3200 जन-औषधि केंद्रों पर 2.50 रुपये प्रति पैड उपलब्‍ध होगी और यह भारत की वंचित महिलाओं के लिए स्‍वच्‍छता, स्‍वास्‍थ्‍य और सुविधा सुनिश्‍चित करेगी।
  • औषध विभाग द्वारा उठाया गया यह कदम सभी के लिए किफायती और गुणवत्‍ता वाले स्‍वास्‍थ्‍य सेवा उपलब्ध कराने की प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी की परिकल्‍पना को साकार करेगा।

6. महिला उद्यमियों के लिए उद्यम सखी पोर्टल का शुभारंभ

अंतर्राष्‍ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर सूक्ष्‍म ,लघु और मध्‍यम उद्यम मंत्रालय एमएसएमई की ओर से भारतीय महिला उद्यमियों के लिए http://www.udyamsakhi.org. के नाम से एक पोर्टल शुरु किया गया।

  • एमएसएमई राज्‍य मंत्री श्री गिरिराज सिंह ने एक कार्यक्रम मे पोर्टल का शुभारंभ किया।
  • श्री सिंह ने इस अवसर पर कहा कि‍ देश में इस समय 80 लाख ऐसी महिलाएं हैं जिन्‍होंने अपना कारेाबार शुरु किया है सफलातपूर्व उसे चला रही हैं। उन्‍होंने कहा कि‍ एमएसएमई मंत्रालय का मानना है कि भारतीय महिलाएं देश की आर्थिक प्रगति में अहम भूमिका निभा सकती हैं।
  • पोर्टल के जरिए एक ऐसा नेटवर्क बनाने का प्रयास किया गया है जिसके जरिए उद्यमशीलता को बढावा दिया जा सके और साथ ही महिलाओं को स्‍वालंबी और सशक्‍त बनाने के लिए कम लागत वाली सेवाओं और उत्‍पादों के लिए कारोबार के नए मॉडल तैयार किए जा सकें।

7. भारतीय रिजर्व बैंक ने एसबीआई पर 40 लाख रुपये का जुर्माना लगाया

भारतीय रिजर्व बैंक ने एसबीआई पर नकली नोटों को पहचानने के निर्देशों का पालन न करने के लिए 40 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है।

  • भारतीय रिज़र्व बैंक ने कहा है कि नकली नोटों के नियमों के साथ विनियामक अनुपालन में एसबीआई में कमी देखी गई है।
  • नियामक ने देश के सबसे बड़े ऋणदाता की दो शाखाओं के मुद्रा चेस्टों का निरीक्षण किया था और नकली नोटों को पहचानने और जब्त करने पर जारी किए गए अपने निर्देशों का उल्लंघन होते देखा था।

8. टीसीएस 2018 में सबसे तेजी से बढ़ता आईटी सेवा ब्रांड

अग्रणी ब्रांड वैल्यूएशन फर्म, ब्रांड फाइनेंस द्वारा किए गए मूल्यांकन में दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ते आईटी सेवा ब्रांड के रूप में अग्रणी आईटी सेवा संगठन, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज को नामित किया गया है।

  • 2018 के लिए ब्रांड फाइनेंस आईटी सर्विसेज 15 वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक, टीसीएस के पास कुल 10.391 बिलियन अमरीकी डालर का ब्रांड वैल्यू है; जो पिछले वर्ष से 14.4 प्रतिशत अधिक है।

9. नेफ्यू रियो ने नागालैंड के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली

नेफ्यू रियो ने नागालैंड के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली है। चुनावों में भाजपा और राष्ट्रवादी डेमोक्रेटिक पीपल्स पार्टी (एनडीपीपी) ने 29 सीटें जीती हैं।

  • यह नेफ्यू रियो का नागालैंड के मुख्यमंत्री के रूप में यह चौथा कार्यकाल होगा।
  • श्री रियो 2003 और 2014 के बीच तीन बार नागालैंड के मुख्यमंत्री रहे थे, जिससे वह नागालैंड के एकमात्र मुख्यमंत्री बने, जिन्होंने लगातार तीन बार पद की शपथ ली।

10. बालकृष्ण दोषी भारत के पहले प्रिटज़कर पुरस्कार विजेता बने

बालकृष्ण दोषी प्रिटज़कर पुरस्कार के चार दशक के इतिहास में इसे जीतने वाले पहले भारतीय वास्तुकार बन गये हैं।

  • नोबेल पुरस्कार के बराबर माना जाने वाला यह पुरस्कार दोषी को लगभग 70 वर्षों के कैरियर की मान्यता में दिया गया।
  • दोषी को कम लागत वाले आवास और सार्वजनिक संस्थानों को डिजाइन करने के लिए जाना जाता है।
  • उनकी सर्वाधिक प्रशंसित परियोजनाओं में अहमदाबाद में टैगोर मेमोरियल हॉल और अरन्या लो कॉस्ट हाउसिंग डेवलपमेंट हैं।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

विवरण इस दिन को सम्पूर्ण विश्व की महिलाएँ देश, जात-पात, भाषा, राजनीतिक, सांस्कृतिक भेदभाव से परे एकजुट होकर मनाती हैं।
तिथि 8 मार्च
स्थापना 1910
उद्देश्य यह दिन महिलाओं को उनकी क्षमता, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक तरक़्क़ी दिलाने व उन महिलाओं को याद करने का दिन है जिन्होंने महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए अथक प्रयास किए।
विशेष संयुक्त राष्ट्र हर बार महिला दिवस पर एक थीम रखता है। वर्ष 2015 की थीम है- सशक्त महिला-सशक्त मानवता। महिलाओं को सशक्त करने का अर्थ है ‘इंसानियत को बुलंद करना’।
अन्य जानकारी दुनिया के प्रमुख विकसित एवं विकासशील देशों में भागदौड़ और आपाधापी से होने वाले तनाव के बारे में किए गए सर्वेक्षण के अनुसार भारत की सर्वाधिक महिलाएँ तनाव में रहती हैं। सर्वे में 87 प्रतिशत भारतीय महिलाओं ने कहा कि ज़्यादातर समय वे तनाव में रहती हैं और 82 प्रतिशत का कहना है कि उनके पास आराम करने के लिए वक़्त नहीं होता।
बाहरी कड़ियाँ अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस
अद्यतन‎

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (अंग्रेज़ी: International Women’s Day) हर वर्ष 8 मार्च‘ को विश्वभर में मनाया जाता है। इस दिन सम्पूर्ण विश्व की महिलाएँ देश, जात-पात, भाषा, राजनीतिक, सांस्कृतिक भेदभाव से परे एकजुट होकर इस दिन को मनाती हैं।

महिला दिवस पर स्त्री की प्रेम, स्नेह व मातृत्व के साथ ही शक्तिसंपन्न स्त्री की मूर्ति सामने आती है। इक्कीसवीं सदी की स्त्री ने स्वयं की शक्ति को पहचान लिया है और काफ़ी हद तक अपने अधिकारों के लिए लड़ना सीख लिया है। आज के समय में स्त्रियों ने सिद्ध किया है कि वे एक-दूसरे की दुश्मन नहीं, सहयोगी हैं।[1] संयुक्त राष्ट्र हर बार महिला दिवस पर एक थीम रखता है। वर्ष 2015 की थीम है- सशक्त महिला-सशक्त मानवता। महिलाओं को सशक्त करने का अर्थ है ‘इंसानियत को बुलंद करना’।

‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ मनाती हुई महिलाएँ

“नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पग तल में।
पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में।।“

‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’

इतिहास

इतिहास के अनुसार आम महिलाओं द्वारा समानाधिकार की यह लड़ाई शुरू की गई थी। लीसिसट्राटा नामक महिला ने प्राचीन ग्रीस में फ्रेंच क्रांति के दौरान युद्ध समाप्ति की मांग रखते हुए आंदोलन की शुरुआत की, फ़ारसी महिलाओं के समूह ने वरसेल्स में इस दिन एक मोर्चा निकाला, इसका उद्देश्य युद्ध के कारण महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार को रोकना था। पहली बार सन् 1909 में सोशलिस्ट पार्टी ऑफ़ अमेरिका द्वारा पूरे अमेरिका में 28 फ़रवरी को महिला दिवस मनाया गया था। 1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल द्वारा कोपेनहेगन में महिला दिवस की स्थापना हुई। 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में लाखों महिलाओं ने रैली निकाली। इस रैली में मताधिकार, सरकारी नौकरी में भेदभाव खत्म करने जैसे मुद्दों की मांग उठी। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, रूसी महिलाओं द्वारा पहली बार शांति की स्थापना के लिए फ़रवरी माह के अंतिम रविवार को महिला दिवस मनाया गया। यूरोप भर में भी युद्ध विरोधी प्रदर्शन हुए। 1917 तक रूस के दो लाख से ज़्यादा सैनिक मारे गए, रूसी महिलाओं ने फिर रोटी और शांति के लिए इस दिन हड़ताल की। हालांकि राजनेता इसके ख़िलाफ़ थे, फिर भी महिलाओं ने आंदोलन जारी रखा और तब रूस के जार को अपनी गद्दी छोड़नी पड़ी और सरकार को महिलाओं को वोट के अधिकार की घोषणा करनी पड़ी।
‘महिला दिवस’ अब लगभग सभी विकसित, विकासशील देशों में मनाया जाता है। यह दिन महिलाओं को उनकी क्षमता, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक तरक़्क़ी दिलाने व उन महिलाओं को याद करने का दिन है जिन्होंने महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए अथक प्रयास किए।[2]‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ ने भी महिलाओं के समानाधिकार को बढ़ावा और सुरक्षा देने के लिए विश्वभर में कुछ नीतियाँ, कार्यक्रम और मापदंड निर्धारित किए हैं। भारत में भी ‘महिला दिवस’ व्यापक रूप से मनाया जाने लगा है।[3]

प्रगति, दुर्गति में परिणीत

समाज में यह विषमता चारों तरफ है और महिलाओं को लेकर भी यह सहज स्वाभाविक है। महिलाओं की प्रगति बदलाव की बयार में दुर्गति में अधिक परिणीत हुई है। हम बार-बार आगे बढ़कर पीछे खिसके हैं। बात चाहे अलग-अलग तरीक़े से किए गए बलात्कार या हत्या की हो, खौफनाक फरमानों की या महिला अस्मिता से जुड़े किसी विलंबित अदालती फैसले की। कहीं ना कहीं महिला कहलाए जाने वाला वर्ग हैरान और हतप्रभ ही नज़र आया है।[2]

सृष्टि सृजन में योगदान

‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ मनाती हुई महिलाएँ

सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के बाद सृष्टि सृजन में यदि किसी का योगदान है तो वो नारी का है। अपने जीवन को दांव पर लगा कर एक जीव को जन्म देने का साहस ईश्वर ने केवल महिला को प्रदान किया है। हालाँकि तथा-कथित पुरुष प्रधान समाज में नारी की ये शक्ति उसकी सबसे बड़ी कमज़ोरी मानी जाती है। आज समाज के दोहरे मापदंड नारी को एक तरफ पूज्यनीय बताते है तो दूसरी ओर उसका शोषण करते हैं। यह नारी जाति का अपमान है। औरत समाज से वही सम्मान पाने की अधिकारिणी है जो समाज पुरुषों को उसकी अनेकों ग़लतियों के बाद भी पुन: एक अच्छा आदमी बनने का अधिकार प्रदान करता है।

शक्ति प्रधान समाज का अंग

नारी को आरक्षण की ज़रूरत नहीं है। उन्हें उचित सुविधाओं की आवश्यकता है, उनकी प्रतिभाओं और महत्त्वकांक्षाओं के सम्मान की और सबसे बढ़ कर तो ये है कि समाज में नारी ही नारी को सम्मान देने लगे तो ये समस्या काफ़ी हद तक कम हो सकती है। महिला अपनी शक्ति को पहचाने और पुरुषों की झूठी प्रशंसा से बचे और सोच बदले कि वे पुरुष प्रधान समाज की नहीं बल्कि शक्ति प्रधान समाज का अंग है और शक्ति प्राप्त करना ही उनका लक्ष्य है और वो केवल एक दिन की सहानुभूति नहीं अपितु हर दिन अपना हक एवं सम्मान चाहती है।[4]

‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ मनाती हुई महिलाएँ

पूंजीवादी शोषण के ख़िलाफ़

‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ लगभग सौ वर्ष पूर्व, पहली बार मनाया गया था, जब पूंजीवाद और साम्राज्यवाद तेज़ी से विकसित हो रहे थे और लाखों महिलायें मज़दूरी करने निकल पड़ी थीं। महिलाओं को पूंजीवाद ने मुक्त कराने के बजाय, कारख़ानों में ग़ुलाम बनाया, उनके परिवारों को अस्त-व्यस्त कर दिया, उन पर महिला, मज़दूर और गृहस्थी होने के बहुतरफा बोझ डाले तथा उन्हें अपने अधिकारों से वंचित किया। महिला मज़दूर एकजुट हुईं और बड़ी बहादुरी व संकल्प के साथ, सड़कों पर उतर कर संघर्ष करने लगीं। अपने दिलेर संघर्षों के ज़रिये, वे शासक वर्गों व शोषकों के ख़िलाफ़ संघर्ष में कुछ जीतें हासिल कर पायीं। इसी संघर्ष और कुरबानी की परंपरा ‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ पर मनायी जाती है। ‘अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस’ पूंजीवादी शोषण के ख़िलाफ़ और शोषण-दमन से मुक्त नये समाज के लिये संघर्ष, यानि समाजवाद के लिये संघर्ष के साथ नज़दीकी से जुड़ा रहा। समाजवादी व कम्युनिस्ट आन्दोलन ने सबसे पहले संघर्षरत महिलाओं की मांगों को अपने व्यापक कार्यक्रम में शामिल किया। जिन देशों में बीसवीं सदी में समाजवाद की स्थापना हुई, वहाँ महिलाओं को मुक्त कराने के सबसे सफल प्रयास किये गये थे।

अपराधीकरण और असुरक्षा का शिकार

‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ के अवसर पर विभिन्न कार्यक्रम

‘प्रथम अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ के मनाये जाने के लगभग सौ वर्ष बाद हमें नज़र आता है, कि एक तरफ, दुनिया की लगभग हर सरकार और सरमायदारों के कई अन्य संस्थान अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर ख़ूब धूम मचाते हैं। वे महिलाओं के लिये कुछ करने के बड़े-बड़े वादे करते हैं। दूसरी ओर, सारी दुनिया में लाखों महिलायें आज भी हर प्रकार के शोषण और दमन का शिकार बनती रहती हैं। वर्तमान उदारीकरण और भूमंडलीकरण के युग में पूंजी पहले से कहीं ज़्यादा आज़ादी के साथ, मज़दूरी, बाज़ार और संसाधनों की तलाश में, दुनिया के कोने-कोने में पहुँच रही है। विश्व में पूरे देश, इलाके और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र विकास के नाम पर तबाह हो रहे हैं और करोड़ों मेहनतकशों की ज़िन्दगी बरबाद हो रही हैं। जहाँ हिन्दुस्तान में हज़ारों की संख्या में किसान कृषि क्षेत्र में तबाही की वजह से खुदकुशी कर रहे हैं, मिल-कारख़ाने बंद किये जा रहे हैं, लोगों को रोज़गार की तलाश में घर-वार छोड़कर शहरों को जाना पड़ता है, शहरों में उन्हें न तो नौकरी मिलती है न सुरक्षा और बेहद गंदी हालतों में जीना पड़ता है। महिलायें, जो दुगुने व तिगुने शोषण का सामना करती हैं, जिन्हें घर-परिवार में भी ख़ास ज़िम्मेदारियाँ निभानी पड़ती हैं, जो बढ़ते अपराधीकरण और असुरक्षा का शिकार बनती हैं, इन परिस्थितियों में महिलायें बहुत ही उत्पीड़ित हैं।

न्याय

विश्व में बीते सौ वर्षों में महिलाओं के अनुभवों से हम यह अहम सबक लेते हैं कि महिलाओं का उद्धार पूंजीवादी विकास से नहीं हो सकता। बल्कि, महिलाओं का और ज़्यादा शोषण करने के लिये, महिलाओं को दबाकर रखने के लिये, पूंजीवाद समाज के सबसे प्रतिक्रियावादी ताकतों और तत्वों के साथ गठजोड़ बना लेता है। जो भी महिलाओं की उन्नति और उद्धार चाहते हैं, उन्हें इस सच्चाई का सामना करना पड़ेगा। जो व्यवस्था मानव श्रम के शोषण के आधार पर पनपती है, वह महिलाओं को कभी न्याय नहीं दिला सकती।

महिला आन्दोलन

‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ मनाती हुई महिलाएँ

भारतमें महिला आन्दोलन पर यह दबाव और भी बढ़ गया है क्योंकि कम्युनिस्ट आन्दोलन की सबसे बड़ी पार्टियाँ और उनके महिला संगठन भी इसी रास्ते पर चलते हैं। इन संगठनों ने एक नयी सामाजिक व्यवस्था के लिये संघर्ष तो छोड़ ही दिया है। महिला आन्दोलन को विचारधारा से न बंधे हुए होने के नाम पर बहुत ही तंग या तत्कालीन मुद्दों तक सीमित रखा गया है। महिला आन्दोलन पर कई लोगों ने ऐसा विचार थोप रखा है कि महिलाओं की चिंता के विषय इतने महिला-विशिष्ट हैं, कि महिलाओं के उद्धार के संघर्ष का सभी मेहनतकशों के उद्धार के संघर्ष से कोई संबंध ही नहीं है। इस तरह से यह नकारा जाता है कि निजी सम्पत्ति ही परिवार और समाज में महिलाओं के शोषण-दमन का आधार है। ऐसी ताकतों ने इस प्रकार से महिला आन्दोलन को राजनीतिक जागरुकता से दूर रखने का पूरा प्रयास किया है, ताकि महिला आन्दोलन पंगू रहे और महिलाओं के उद्धार के संघर्ष को अगुवाई देने के काबिल ही न रहे।
हिन्दुस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी इस अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर देश की सभी संघर्षरत महिलाओं से आह्वान करती है कि आपका भविष्य समाजवाद में है, वर्तमान व्यवस्था के विकल्प के लिये संघर्ष में है। सिर्फ़ वही समाज जो परजीवियों व शोषकों के दबदबे से मुक्त है, वही महिलाओं को समानता, इज्ज़त, सुरक्षा व खुशहाली का जीवन दिला सकती है। पर ऐसी व्यवस्था की रचना तभी हो पायेगी जब महिलायें, जो समाज का आधा हिस्सा हैं, खुद एकजुट होकर इसके लिये संघर्ष में आगे आयेंगी। जैसे-जैसे महिलायें अपने उद्धार के लिये संघर्ष को और तेज़ करेंगी, अधिक से अधिक संख्या में इस संघर्ष में जुड़ने के लिये आगे आयेंगी, वैसे-वैसे वह दिन नज़दीक आता जायेगा जब अपने व अपने परिजनों के लिये बेहतर जीवन सुनिश्चित करने का महिलाओं का सपना साकार होगा।

भारत की प्रसिद्ध महिलाएँ

इंदिरा गाँधी प्रतिभा पाटिल मदर टेरेसा लता मंगेशकर एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी किरण बेदी सरोजिनी नायडू अमृता प्रीतम मीरा कुमार सुचेता कृपलानी बछेन्द्री पाल कर्णम मल्लेश्वरी कल्पना चावला ऐश्वर्या राय सुष्मिता सेन मैरी कॉम साइना नेहवाल

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर कविता

(1) सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा[5]

मैंने हँसाना सीखा है
मैं नहीं जानती रोना।
बरसा करता पल-पल पर
मेरे जीवन में सोना॥

मैं अब तक जान न पाई
कैसी होती है पीड़ा।
हँस-हँस जीवन में मेरे
कैसे करती है क्रीडा॥

जग है असार, सुनती हूँ
मुझको सुख-सार दिखाता।
मेरी आँखों के आगे
सुख का सागर लहराता।

उत्साह-उमंग निरंतर
रहते मेरे जीवन में।
उल्लास विजय का हँसता
मेरे मतवाले मन में।

आशा आलोकित करती
मेरे जीवन को प्रतिक्षण।
हैं स्वर्ण-सूत्र से वलयित
मेरी असफलता के घन।

सुख भरे सुनहले बादल
रहते हैं मुझको घेरे।
विश्वास प्रेम साहस हैं
जीवन के साथी मेरे।[6]

(2) धीरेन्द्र सिंह द्वारा

आसमान सा है जिसका विस्तार
चॉद-सितारों का जो सजाए संसार
धरती जैसी है सहनशीलता जिसमें
है नारी हर जीवन का आधार

कभी फूल सा रंग-सुगंध लगे
कभी चींटी सा बोझ उठाए अपार
कभी स्नेह का लगे दरिया निर्झर
कभी बने किसी का परम आधार

चूल्हा-चौका रिश्तों-नातों की वेणी
हर घर की यह गरिमामय श्रृंगार
आज कहाँ से कहाँ पहुँच गई है
हर नैया की बन सशक्त पतवार

घर से दफ़्तर चूल्हे से चंदा तक
पुरुष संग अब दौड़े यह नार
महिला दिवस है शक्ति दिवस भी
पुरुष नज़रिया में हो और सुधार[7]

अपनों का चाहिए साथ

भारत की प्रसिद्ध बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल जब भी अपने माता-पिता के हाथ में मेडल व कप थामे तस्वीर फेसबुक पर शेयर करती हैं तो उन्हें ढेरों लाइक्स मिलते हैं। पी.वी. सिंधु को जब ‘पद्मश्री‘ मिला तो पूरा परिवार आनंदित था। उनके पिता के मुताबिक, “पी.वी. की कामयाबी उसकी अपनी मेहनत और लगन की बदौलत है। हमने तो सिर्फ़ उस पर भरोसा किया, उसका साथ दिया।“ आधी आबादी का बड़ा तबका ऐसे ही भरोसे और साथ की बाट जोह रहा है। कितनी ही प्रतिभावान बेटियाँ अपने सपनों को ऐसे ही साथ की बदौलत सच करना चाहती हैं। विंग कमाण्डर पूजा ठाकुर ने जब राजपथ पर बराक ओबामा को गार्ड ऑफ़ ऑनर देने वाली वुमन फ़ोर्स का नेतृत्व किया तो इस ऐतिहासिक उपलब्धि पर हर किसी को गर्व हुआ। पूजा ठाकुर कहती हैं कि- “उस ख़ुशी का कोई मोल नहीं, जो देश के लिए योगदान देने के बाद प्राप्त हुआ।… पर यह एहसास नामुमकिन होता, यदि परिवार का साथ नहीं मिलता। अन्य सामान्य लड़कियों की तरह अपनों का साथ पाकर मेरा भी हौसला बढ़ता गया, उत्साह चौगुना होता गया।“

लगातार आर्थिक प्रगति के बावजूद भारतीय महिलाओं को अभी भी स्वास्थ्य, शिक्षा और कार्यक्षेत्र में असमानता का सामना करना पड़ रहा है। जेनेवा स्थित वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के वार्षिक लैंगिक समानता इण्डेक्स में भारत अब 114वें स्थान पर खिसक गया है।

सबसे ज़्यादा तनावग्रस्त हैं भारतीय महिलाएँ

दुनिया के प्रमुख विकसित एवं विकासशील देशों में आज की भागदौड़ और आपाधापी से होने वाले तनाव के बारे में किए गए भारतीय महिलाएं के सर्वेक्षण के अनुसार भारत की सर्वाधिक महिलाएँ तनाव में रहती हैं। दुनिया भर में महिलाएं खुद को बेहद तनाव और दबाव में महसूस करती हैं। यह समस्या आर्थिक तौर पर उभरते हुए देशों में ज़्यादा दिख रही है। एक सर्वे में भारतीय महिलाओं ने खुद को सबसे ज़्यादा तनाव में बताया। 21 विकसित और उभरते हुए देशों में कराए गए नीलसन सर्वे में सामने आया कि तेजी से उभरते हुए देशों में महिलाएँ बेहद दबाव में हैं लेकिन उन्हें आर्थिक स्थिरता और अपनी बेटियों के लिए शिक्षा के बेहतर अवसर मिलने की उम्मीद भी दूसरों के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा है। सर्वे में 87 प्रतिशत भारतीय महिलाओं ने कहा कि ज़्यादातर समय वे तनाव में रहती हैं और 82 फीसदी का कहना है कि उनके पास आराम करने के लिए वक़्त नहीं होता